सूडान में लोकतांत्रिक व्यवस्था के आने और जाने का एक लंबा इतिहास रहा है और हाल के सैन्य तख्तापलट से लोकतांत्रिक व्यवस्था के एक छोटे से काल का अचानक और निरंकुश अंत हो गया। इससे सूडान में काफी कुछ दांव पर लग गया। वहां न केवल शांति और सुरक्षा खतरे में है, बल्कि वृहद क्षेत्र की सुरक्षा भी प्रभावित हो रही है।
वहां की उमर अल बशीर की नेशनल कांग्रेस पार्टी सरकार के 2019 में गिरने से 30 साल के निरंकुश शासन का अंत हो गया था। तब केवल शांति और न्याय ही दांव पर नहीं था, बल्कि देश की पहचान भी दांव पर थी। सूडान कट्टर इस्लामी तत्वों, अनौपचारिक और औपचारिक सशस्त्र बलों, राजनीतिक दलों, ढेर सारे समूहों और सशस्त्र मिलिशिया में विभाजित हो गया था।
बशीर के बाद आई सरकार के पास न केवल वित्तीय संकट से जूझ रहे देश का प्रबंधन करने की जिम्मेदारी थी, बल्कि उसे यह काम सत्ता के बंटवारे की बेहद मुश्किल व्यवस्था के साथ करना था। इसके बाद सेना को 21 महीने की अवधि के लिए शासन करना था, जिसके बाद असैन्य समूह को शेष 18 महीने शासन करना था और 2023 में चुनाव होने थे।
तख्तापलट के बाद यह व्यवस्था के भंग हो गई है। आशंका है कि अब प्रतिद्वंद्वी समूहों एवं प्रतिष्ठानों के बीच संघर्ष शुरू होगा। सूडान के साथ सहानुभूति रखने वालों में इस्लामवादियों में उमर अल-बशीर की नेशनल कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के पूर्व सदस्य और देश में इस्लामी चरमपंथ विचारक हसन अल-तुराबी की पापुलर कांग्रेस पार्टी (पीसीपी) शामिल हैं।
सूडान के इस्लामवादियों को कतर-तुर्की गठबंधन का समर्थन हासिल है। उनके ईरान और सऊदी अरब एवं संयुक्त अरब अमीरात जैसे खाड़ी सदस्य देशों के साथ (कम से कम क्रांति तक) कभी अच्छे और कभी खराब संबंध रहे हैं।कई इस्लामवादियों को क्रांति के बाद जेल में बंद कर दिया गया या इनमें से कई छिप गए। वे अब खुद को संप्रभुता परिषद के सैन्य गुट से पराजित महसूस कर रहे हैं, जिसने इस सप्ताह के तख्तापलट की शुरुआत की थी।
इस गुट में दो मुख्य लोग हैं : सूडान सशस्त्र बलों (एसएएफ) के जनरल अब्देल फतह अल-बुरहान और मोहम्मद हमदान ‘हेमेदती’ डागोलो के नेतृत्व में रैपिड सपोर्ट फोर्स (आरएसएफ)। दोनों गुट राजनीतिक रूप से अव्यवहारिक हैं और खतरनाक भी। सूडान को नियंत्रित करने की अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के कारण बंटे हुए हैं। अल-बुरहान को दारफुर में हुए नरसंहार के लिए जिम्मेदार बताया जाता है। हेमेदती को खार्तूम में तीन जून 2019 को हुए नरसंहार के साथ-साथ दारफुर के जेबेल आमेर में सोने के अवैध खनन संबंधी कार्यों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। हालिया वर्षों में आरएसएफ को मिस्र, सऊदी अरब और यूएई का समर्थन मिला है। हेमेदती ने अपने आरएसएफ लड़ाकों को सऊदी अरब की ओर से यमन में हूती विद्रोहियों के खिलाफ लड़ने के लिए भेजा था।
सैन्य गुट के पास ‘मिलिट्री इंडस्ट्रियल कॉरपोरेशन’ और अल-जुनैद जैसी कई कंपनियों की हिस्सेदारी है, जिससे उसे कई माध्यमों से अवैध आय मिलती है। उसे यह आय सोने के अनियमित खनन, निर्माण, तेल, विमानन और हथियारों के सौदे से मिलती है। इनमें से बड़ी रकम सरकारी खजाने में न जाकर विदेशों में निजी खातों में जाती है। सूडान के नागरिक सैन्य जुंटा के खिलाफ असैन्य प्रतिरोध का एक साहसी अभियान चला रहे हैं। संभव है कि वे सेना पर दबाव बना लें।
लेकिन दुनिया भर से अल-बुरहान और हेमेदती का समर्थन करने वाले देशों पर महत्त्वपूर्ण राजनयिक दबाव बनाने की भी जरूरत होगी। इसके अलावा अवैध राजस्व के माध्यमों की फोरेंसिक जांच पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता बताई जा रही है। सवाल यह है कि क्या अंतरराष्ट्रीय समुदाय बहुत देर होने से पहले इसे रोकने के लिए जरूरी कदम उठाएगा।
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