दुनिया की हर बाहरी और अंदरूनी हरकत को भौतिकी के जो पारंपरिक कायदे अब तक समझा पा रहे थे, वो क्वांटम को समझाने में नाकाफी थे। इलेक्ट्रान और दूसरे परमाणुओं के बर्ताव पर सालों तक नजर रखते हुए नील बोर, वर्नर श्रोडिंगर और हाइजनबर्ग को इन परमाणुओं ने एक सुरंग से गुजरते हुए एक ही वक्त में दो जगह मौजूद रहकर चौंका दिया। दोनों की मौजूदगी के बीच संवाद के तार रोशनी की चाल से भी तेज जुड़ गए। इन वैज्ञानिकों के सामने भी ये उलझन तो रही होगी कि इसे सच मानें या दिमागी फितूर मानकर खारिज कर दें। क्योंकि अगर ये सच हुआ तो विज्ञान के सारे नियम यहां औैंधे मुंह गिर पड़ेंगे।
अब तक ये समझा जाता रहा कि कोई भी परमाणु या तो लहर की तरह बहता हुआ चलेगा या फिर एक कण की तरह कदम दर कदम। लेकिन अब दोनों तरह के बर्ताव की गुंजाइश मिलने पर सारा ताना-बाना नया बुना जा रहा है। वेदांत मन को ‘वृत्ति’ यानी लहर कहता रहा है, और उस ‘वृत्ति’ को ही व्यापक तौर पर नजर आने वाले जगत के लिए जिम्मेदार बताता है।
जब परमाणु के लिए क्वांटम विज्ञान यह कहता है कि वो एक जगह टिक कर नहीं बल्कि अपने इलाके में कहीं पर भी किसी भी वक्त मौजूद रह सकता है तो हमारी समझ इसे मानने से इनकार ही करेगी कि कोई भी चीज एक वक्त में कहीं भी मौजूद कैसे रह सकती है। ये तो तब तक भ्रमजाल की तरह ही होगा, जब तक इस दिशा में प्रमाण और विज्ञान का हमारा अभ्यास इसे आजमा न ले। हमारे सिद्ध साधुओं ने क्रिया योग सहित योग-दर्शन में महारत हासिल कर इसे आजमाया तो है लेकिन इससे दुनिया की बेहतरी में क्या जोड़ा? ये जवाब पाने से पहले ही हमने इसे करिश्माई ताकत कहकर इसके खुलासे में अड़ंगा लगा दिया जो विज्ञान कभी नहीं करता। ज्ञान और जिज्ञासा की नई दुनिया इस अड़ंगे के खिलाफ है।
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