इस समय अंटार्कटिका में गर्मी का मौसम चल रहा है और आर्कटिक में गर्मी आ रही है। 21 मार्च को दोनों ही जगह दिन और रात बराबर थे, लेकिन इस सप्ताह मौसम कुछ ऐसा हुआ है कि दोनों ही जगह पर रेकार्ड तोड़ ग्रीष्म लहर चली है। अधिकतम तापमान औसत से 30 डिग्री ज्यादा पाया गया है। यूं तो वैज्ञानिक कहते रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन का असर ऐसे अचानक उछाल के रूप में दिखता रह सकता है, लेकिन अचानक ऐसा क्या हुआ कि धरती के दो सिरों पर एक ही वक्त तापमान एक साथ उछल गया? वैज्ञानिक इसे समझने की कोशिश कर रहे हैं।
अंटार्कटिका में में ग्रीष्म लहर आस्ट्रेलिया दक्षिण पूर्व में स्थिति तीव्र उच्च दबाव की धीमी प्रक्रिया के कारण आई, जिसमें भारी मात्रा में गर्म हवा और नमी अंटार्कटिका के आंतरिक इलाकों तक पहुंच गई। इसके साथ ही पूर्वी आंतरिक अंटार्कटिका में एक तीव्र कम दबाव की प्रणाली भी काम कर रही थी, फिर अंटार्कटिका के बर्फीले पठार के ऊपर के बादलों ने सतह से निकली गर्मी को फांस लिया था, जिसने आग में घी का काम किया।
पतझड़ से ही अंटार्कटिका के अंदर का तापमान इतना ज्यादा नहीं रहा था कि ग्लेशियर और बर्फ की परत पिघल जाती। फिर भी तापमान में बड़े उतार-चढ़ाव भी हो रहे थे। बीच पठार में -17 डिग्री के आसपास का तापमान था, जो औसत से 15 डिग्री ज्यादा था। उच्च पठार पर ही स्थित कोनकार्डा में मार्च का औसत तापमान 40 डिग्री सेल्सियस ऊपर तक दर्ज किया गया। अंटार्कटिका में तटीय इलाकों में बारिश कम होती है। ऐसा तभी होता है, जब तापमान बर्फ जमने वाले अंक से ऊपर हो जाता है तब वहां बर्फ गिरने की जगह बारिश होती है।
पिछले हफ्ते आस्ट्रेलियाई कैसे स्टेशन पर तापमान 5.6 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया था, जो दो साल दूसरे ग्रीष्म लहर का मौका था। अंटार्कटिका के तटीय इलाकों में रहने वाले पेंगुइन हाल ही में गर्मी के प्रजनन से निपटे थे। राहत की बात यह है कि ग्रीष्म लहर से पहले ही उनके बच्चे समुद्र में खुद शिकार के लिए चले गए थे। बारिश की वजह से काई पर असर हुआ। इसके असर का पता अगली बार ही लग सकेगा।
इसी तरह का मौसम पिछले सप्ताह आर्कटिक में देखने को मिला। अमेरिका के उत्तर पूर्वी तटीय इलाकों से तीव्र निम्न दबाव का तंत्र बनना शुरू हुआ और यहां एक उच्च दबाव का तंत्र भी बना। इससे आर्कटिक वृत्त में गर्म हवा का प्रवाह बना। नार्वे में अधिकतम तापमान 3.9 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। अमेरिकी शोधकर्ताओं ने इस निम्न दबाव वाले तंत्र को ‘बांब साइक्लोन’ नाम दिया है, क्योंकि यह बहुत तेजी से बनता है।
इस साल आर्कटिक की सर्दियों में समुद्री बर्फ के हाल निचले स्तर के थे और ग्रीनलैंड में तो रेकार्ड बारिश दर्ज की गई थी। यदि गर्म हालात समुद्री बर्फ को सामान्य से पहले तोड़ देते हैं तो इसका बहुत से जीवों पर असर होता है। ध्रुवीय भालू को सील का शिकार करने लिए लंबा सफर करना पड़ता है। शिकार करने की संस्कृति प्रभावित होती है। वहीं नार्वे में फूल खिलने का मौसम जल्दी आने लगा है, क्योंकि गर्मी असामान्य रूप से पहले आने लगी है। माडल वाले अध्ययन सुझाते हैं कि जलवायु के स्वरूप में ज्यादा और विविधता भरे बदलाव देखने को मिलेंगे।
जलवायु परिवर्तन के दौर में एक ग्रीष्म लहर दूसरे का आधार बन सकती हैं। आर्कटिक दुनिया की तुलना में दोगुनी गति से गर्म हो रहा है, क्योंकि बर्फ पिघलने से सूर्य की रोशनी समुद्र में ज्यादा अवशोषित हो रही है। संयुक्त राष्ट्र के ‘इंटर गवर्नमेंटल पैनल आन क्लाइमेट चेंज’ का कहना है कि आर्कटिक में 2050 तक बर्फ रहित गर्मियां देखने को मिलने लगेंगी। ऐसा ही कुछ अंटार्कटिका में भी दिखेगा।
अंटार्कटिक पर मौसम में यह बदलाव इसलिए भी चौंकाने वाला है, क्योंकि इस वक्त वहां दिन लगातार छोटे होते जा रहे हैं और सर्दी बहुत अधिक होनी चाहिए। ठीक उसी वक्त आर्कटिक सर्दी से बाहर निकल रहा है। इसलिए कुछ वैज्ञानिकों ने कहा है कि एक साथ दोनों जगह एक जैसी घटना होना कल्पनीय भी नहीं है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, ये एकदम उलटे मौसम हैं। आप उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव को एक साथ, एक समय पर पिघलते नहीं देखते। इन घटनाओं पर ला नीलो और अन्य मौसमी घटनाओं का कितना प्रभाव है, यह जानने के लिए गहन अध्ययन की जरूरत होगी।
from National News in Hindi, Latest India’s News in Hindi, Hindi National News, नेशनल न्यूज़ - Jansatta | Jansatta https://ift.tt/qyInCHf
No comments:
Post a Comment