कभी भारतीय जनता पार्टी के फायर ब्रांड नेताओं में शुमार रहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती की लोकप्रियता पिछले कुछ दिनों में घटी है। हाल की राजनीतिक सक्रियता को देखें तो उनका रसूख पार्टी में कम हुआ है। मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी उमा भारती इन दिनों अपनी शराबबंदी की मांग को लेकर सुर्खियों में हैं।
दरअसल बीते 13 मार्च को उमा भारती ने भोपाल के आजाद नगर स्थित एक शराब की दुकान में घुसकर तोड़फोड़ की। इसका जिक्र उन्होंने अपने ट्विटर से भी किया। उमा भारती ने चेतावनी देते हुए स्थानीय प्रशासन को कहा कि एक सप्ताह के भीतर शराब की दुकान बंद की जानी चाहिए। इसको लेकर उमा भारती एक बार फिर से चर्चा में आ चुकी हैं। माना जा रहा है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री अपने इस विरोध के मुद्दे के जरिए पार्टी नेतृत्व का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करना चाहती हैं।
दरअसल 2019 के लोकसभा चुनाव में भोपाल से उमा भारती की जगह साध्वी प्रज्ञा को भाजपा ने टिकट दिया और वो जीती भी। इसके बाद से जिस तरह से उमा भारती पार्टी में साइड लाइन हुईं उससे निकलने के लिए वो तमाम तरह की गतिविधियां करती देखी जा रही हैं।
गौरतलब है कि 13 मार्च को उमा भारती अपने समर्थकों के साथ शराब की दुकान में पहुंची और तोड़फोड़ करने की कोशिश की। जिसके कुछ दिनों बाद सीएम शिवराज सिंह चौहान ने उनसे मुलाकात की और शराब के खिलाफ उनके जन जागरूकता अभियान में भाजपा सरकार के सहयोग का आश्वासन दिया।
उमा भारती पिछले साल से मध्य प्रदेश में शराबबंदी की मांग कर रही है। उनके द्वारा की गई तोड़फोड़ की कार्रवाई से सीएम शिवराज सिंह चौहान के लिए मुसीबतें खड़ी हो रही हैं। दरअसल मध्य प्रदेश में शराब का व्यापार राजस्व का एक प्रमुख स्रोत रहा है। खासकर जीएसटी के कार्यान्वयन और कोरोना महामारी की दो लहरों के बीच 3.37 लाख करोड़ रुपये से अधिक के कर्ज में डूबे राज्य ने 2020-21 में शराब पर लगाए गए कर से 1,183 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई की।
लेकिन उमा भारती द्वारा लगातार शराबबंदी की मांग उठाए जाने से राज्य को राजस्व में घाटा होने का डर है। ऐसे में शिवराज सिंह चौहान भी उमा भारती से मिलने पहुंचे थे और सहयोग का आश्वासन दिया। वहीं उमा भारती द्वारा इस तरह से विरोध दर्ज कराये जाने को लेकर वरिष्ठ भाजपा नेताओं का कहना है कि इसका राज्य इकाई से कोई लेना-देना नहीं है, बल्कि यह केंद्रीय पार्टी नेतृत्व के लिए एक संकेत है।
बता दें कि उमा भारती मध्य प्रदेश में कई मुद्दों पर अपनी ही पार्टी को अक्सर निशाने पर लेती रही हैं। इनमें महिला सुरक्षा, ओबीसी कोटा और अन्य मुद्दे शामिल हैं।
उमा भारती की राजनीति: उमा भारती भाजपा की कद्दावर नेताओं में शुमार रहीं। हालांकि 2004 में उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ खुलेआम बयान दिया। जिसकी वजह से उन्हें बीजेपी से निकाल दिया गया था। आगे चलकर नवंबर 2005 में पार्टी ने अपना फैसला बदल दिया था।
इसके अलावा उमा भारती ने शिवराज को मुख्यमंत्री बनाए जाने को लेकर विरोध किया था। बाद में पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से भी उन्हें हटा दिया गया। 6 साल बाद तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने उनकी वापसी कराई। उसके बाद से मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को राज्य की राजनीति से दूर ही रखा गया है।
उमा भारती ने 1999 में भोपाल लोकसभा सीट से चुनाव जीता और अटल बिहारी वाजपयी की सरकार में मानव संसाधन विकास, पर्यटन, कोयला खदान, युवा कल्याण और खेल कूद मंत्रालय बनाई गईं। इससे पहले वो 2003 में मध्य प्रदेश की सीएम भी रहीं। हालांकि बीते कई सालों में उमा भारती का पार्टी में कद घटता देखा गया है। ऐसे में माना जा रहा है कि वो दोबारा अपनी साख पाने व राजनीतिक में सक्रिय होने के लिए तमाम तरह की गतिविधियां कर रही हैं।
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