Monday, January 24, 2022

हेडगेवार ने जहां किया था सत्याग्रह, वहां बनेगा संग्रहालय

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संस्थापक डाक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने 1930 में महाराष्ट्र के यवतमाल जिले स्थित पुसद में ‘जंगल सत्याग्रह’ किया था। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय अब उसी स्थान पर एक संग्रहालय का निर्माण करने जा रहा है। राज्यसभा में मनोनीत सांसद राकेश सिन्हा ने पिछले साल इस संग्रहालय को बनाने की मांग संसद में की थी।

केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय की ओर से जारी पत्र में कहा गया है कि सांसद (राज्यसभा) राकेश सिन्हा ने 11 फरवरी, 2021 को राज्यसभा में एक विशेष उल्लेख में कहा था कि 1930 में डाक्टर केशव बलिराम हेडगेवार के नेतृत्व में हजारों लोगों ने सत्याग्रह किया था। सिन्हा ने मांग की थी कि स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर उस सत्याग्रह की याद में पुसद (यवतमाल) महाराष्ट्र में सत्याग्रह स्थल पर संग्रहालय निर्माण किया जाए। मंत्रालय की ओर से इस संबंध में विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं।

हेडगेवार की जीवनी के लेखक राकेश सिन्हा के मुताबिक ‘आजादी के अमृत महोत्सव’ के तहत भारत के स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित स्थानों का कायाकल्प करना भी शामिल है। उनके अनुसार राष्ट्रीय अभिलेखागार में उपलब्ध एक ब्रिटिश खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक विदर्भ में सविनय अवज्ञा आंदोलन लगभग मर चुका था। यह हेडगेवार की भागीदारी थी जिसने इस क्षेत्र में आंदोलन को पुनर्जीवित किया।

हेडगेवार ने स्पष्ट कर दिया था कि ब्रिटिश साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ दो मंच, दो झंडे और दो नेता नहीं हो सकते हैं। अंग्रेजों के खिलाफ लोगों को अपने मतभेदों को भूलाकर एकजुट होना चाहिए और एक मोर्चा बनाना चाहिए। हेडगेवार ने नागपुर से पुसाद तक सविनय अवज्ञा आंदोलन के महत्त्व को समझाते हुए लोगों को लामबंद किया। सिन्हा के मुताबिक अंग्रेजों के लिए जंगल राजस्व का एक बड़ा स्रोत था। हेडगेवार ने जंगल के कानून की अवज्ञा की और इसके लिए उन्हें नौ महीने जेल की सजा हुई।

सिन्हा के अनुसार सविनय अवज्ञा आंदोलन से संबंधित विभिन्न गतिविधियों की तैयारी और कार्यक्रम की देखभाल करने के लिए हर क्षेत्र में युद्ध परिषदें बनाइ गई थीं। हेडगेवार का पुसद मार्च भी युद्ध परिषद द्वारा निर्धारित किया गया था। सिन्हा के मुताबिक विदर्भ में बाल गंगाधर तिलक के सहयोगियों के बीच मतभेदों के कारण ब्रिटिश खुफिया रिपोर्ट में इसका दस्तावेजीकरण किया था। इस क्षेत्र में आंदोलन कमजोर था और हेडगेवार की भागीदारी ने आंदोलन को पुनर्जीवित किया। हेडगेवार ने जोर देकर कहा था कि साम्राज्यवादी ताकतों से लड़ने और उन्हें उखाड़ फेंकने के लिए जन भावना, समर्थन और अपील महत्त्वपूर्ण है। राकेश सिन्हा सितंबर, 2019 में यवतमाल आकर सत्याग्रह स्थल का दौरा किया था।

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