Friday, January 21, 2022

छाप तिलक सब किन्हीं

UP Election: समाज में सुधारवादी बयार लाते हुए संत कवियों का ऐसा दौर आया जिसमें जातिगत भेदभाव की पहचान, निशानियों को मिटा देने की बात कही गई। उन निशानियों पर सवाल उठाए गए जो मनुष्यों के बीच भेद के निशान बनाकर एक-दूसरे को ऊंचा-नीचा ठहराते हैं। कबीर, रैदास, बुल्ले शाह, जैसे संत कवियों ने हर उस प्रतीक पर प्रहार किया जो मनुष्यता के बीच गैरबराबरी की दीवार ला रहे थे। लेकिन आज इक्कीसवीं सदी में पहचान की लड़ाई ऐसी हो गई है कि प्रतीकों से ही समाज और सत्ता के प्रतिमान स्थापित किए जा रहे हैं। कोई टीके की, कोई तिलक की तो कोई टोपी की पहचान की राजनीति कर रहा है। हर कोई धार्मिक और जातिगत पहचान को धारण कर रहा है। देश के सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति भी अपनी जाति बताते हैं। जाति की इस आंधी में क्या कबीर तो क्या रैदास, सबकी विरासत उड़ गई। जाति की राजनीति पर बेबाक बोल

चल ओए बुल्लेया चल ओत्थे चलिए
जित्थे सारे अन्ने
न कोई साडी जात पछाने
न कोई सानूं मन्ने

बुल्ले शाह ऐसी दुनिया में जाना चाहते थे, जहां सारे अंधे हों। जहां न कोई उनकी जाति पहचाने और न उन्हें मानता हो। सूफी कवि जाति के खात्मे के लिए अंधी दुनिया की वकालत कर बैठे। आज हम सबको ऐसा चश्मा पकड़ाया जा रहा है जिससे हम सिर्फ जाति ही पहचानें। देश के सर्वोच्च पद पर बैठा इंसान जब अपनी जाति बताए तो वहां चुनावों के समय बुल्ले शाह का पैगाम बेमानी ही होगा।

पंजाब में मतदान की तारीख बदल दी गई। सूबे में पहले 14 फरवरी को मतदान होना था। पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने चुनाव आयोग से मतदान की तारीख आगे बढ़ाने की मांग कर दी। यह मांग सिर्फ कांग्रेस के चन्नी ने ही नहीं की। भाजपा और बसपा समेत सभी राजनीतिक दलों ने एक सुर में यह मांग उठाई। वजह यह थी कि 16 फरवरी को संत रविदास जयंती होती है।

पंजाब के नेताओं का कहना था कि गुरु रविदास जयंती के कारण राज्य का बड़ा मतदाता वर्ग एक हफ्ते पहले ही वाराणसी जा सकता है। इसलिए वे लोग मतदान के अधिकार से वंचित रह जाएंगे। बनारस के सीर गोवर्धनपुर में संत रविदास का जन्म हुआ था। राजनीतिक दलों की मांग देखते हुए चुनाव आयोग ने पंजाब में मतदान की तारीख आगे बढ़ा कर 20 फरवरी कर दी।

जब चुनाव आयोग एक खास समुदाय के धार्मिक और राजनीतिक अधिकार, राजनीतिक दलों को उनकी सख्त जरूरत को देखते हुए चुनाव की तारीखें बदलने के लिए मजबूर था, उसी समय राजनेताओं की तरफ से ऐसी तस्वीरें आनी शुरू हो गई जिन्हें आज के लोकतंत्र में कोई पसंद नहीं करेगा। शुरुआत हुई योगी आदित्यनाथ की तस्वीर के साथ। वो संक्रांति पर दलित के साथ भोजन कर रहे थे।

इसके साथ ही रवि किशन और अन्य नेताओं की तस्वीरें भी आने लगीं। इसे लोकतंत्र का बदला मिजाज ही कहा जा सकता है कि चारों तरफ से ऐसी तस्वीरों की आलोचना होने लगी और नेताओं की जनसंपर्क फौज को सफाई देने के लिए जुट जाना पड़ा। कांग्रेस, भाजपा नेताओं के तो भाजपा, कांग्रेसी नेताओं के ‘दलित प्रेम पर्यटन’ की तस्वीरें साझा कर एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे थे। सोशल मीडिया के दौर में जिस तरह इन तस्वीरों को नापसंद किया गया वह लोकतांत्रिक चेतना का एक उदाहरण है।

भारत में भक्ति आंदोलन के दौरान देश के अलग-अलग हिस्सों में जाति की दीवार तोड़ने के लिए सवाल उठने लगे थे। भगवान बनाम भोजन के लिए श्रम की लड़ाई में श्रम को बड़ा बताते हुए रविदास बेलौस कह गए-
‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’
पूरे भक्ति आंदोलन की बुनियाद ही जातिगत भेदभाव के सवाल पर बनी। उस समय के संतों और गुरुओं ने इसे लेकर जो असंतोष जताया और सुधार के सवाल किए उसने भारत की चेतना को नई दिशा दी।

भक्ति आंदोलन में सबसे पहला सवाल उठा अध्यात्म के स्तर पर भेदभाव को लेकर। इस आध्यात्मिक गैरबराबरी की पहचान मृत्यु-बोध से है। भक्त कवियों ने चेतना की शुरुआत अंतिम सत्य के साथ की। राजा, रंक, अमीर-गरीब, शोषक-शोषित सबको मरना है। जैसे हम मरेंगे, वैसे तुम भी मरोगे। मृत्यु को कोई टाल नहीं सकता। मृत्यु वो सच है जिसे कोई बदल नहीं सकता है। जिस एक स्तर पर बराबरी तय है, वो मृत्यु है। इसी बराबरी के आधार पर आगे की बराबरी की बात की गई।

जब बराबरी की बात हुई तो गैरबराबरी का बिंदु भी उठा। जन्म के आधार पर, कर्मकांड के आधार पर आध्यात्मिक गैरबराबरी के खिलाफ आवाज बुलंद की गई और मुक्ति का एक विमर्श तैयार किया गया। सबको मुक्ति के आधार पर ही भक्ति आंदोलन की मुहिम शुरू हुई।
भक्ति आंदोलन, आजाद भारत में संविधान निर्माण तक पहुंचा। संविधान ने छुआछूत को अपराध के दायरे में ला दिया। आज 2022 तक कितना कुछ बदल चुका है। एक पूरी सामाजिक क्रांति आ गई है। पिछड़ी कही जाने वाली जातियों में मध्य वर्ग और उच्च वर्ग का प्रभावशाली तबका भी बन चुका है।

आप जिनके साथ फोटो खिंचवा कर अपनी महानता साबित करने में लगे हैं उनकी लड़ाई ने सबको समानता की रेखा पर खड़ा कर दिया है। आपके मंत्रिमंडल का समीकरण इसी आधार पर बनता है कि कोई तबका नाराज न हो जाए। चुनावी उम्मीदवारों की सूची बताती है कि अब दलितों के साथ खाना खाने की तस्वीर जारी कर आप अपने वैचारिक पिछड़ेपन की तस्वीर को सामने लाते हैं।

अब मठाधीश का दलित के साथ भोजन करना किसी प्रगतिशीलता की निशानी नहीं हो सकती। आप कहीं के मठाधीश चाहे जिस भी वजह से बने हों, लेकिन मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री तक इसलिए बने हैं क्योंकि आपको मतदान से चुना गया है। आप अपना परलोक सुधारने के लिए नहीं इसी लोक में एक और चुनावी जीत पाने के लिए ऐसा करते हैं। जिस देश में कई संवैधानिक पदों पर दलित समुदाय से लोग आ चुके हैं वहां आप ऐसा करके क्या साबित करना चाहते हैं? अब खाने की थाली नहीं, आपको सत्ता की कुर्सी साझा करनी है।

दलितों के साथ खाना खाते हुए तस्वीरें जारी करना यही बताता है कि आप आज भी अतीतजीवी हैं। मध्यकाल से लेकर औपनिवेशिक काल तक तो इसका प्रतीकात्मक महत्व समझा जा सकता है। तब इसे प्रगतिगामी कदम कहा जा सकता था। आज यह वैसा अतीतगामी कदम है जो आपके मानसिक पिछड़ेपन की निशानी है। कोई प्रतीक एक स्तर तक ही सकारात्मक संदेश दे सकता है। काल और चेतना बदलने के बाद उसका नकारात्मक असर ही होता है।

आज दलितों के साथ भोजन की तस्वीर रेखांकित करेगी कि आप अब भी छुआछूत की लकीर को मानते हैं। खास जाति के साथ खाने की तस्वीरें छुआछूत को गहरे निशान के साथ रेखांकित करने लगती हैं। नई पीढ़ी को संदेश जाता है कि छुआछूत आज भी वजूद में है और सत्ता के लोग उसे सत्यापित कर रहे हैं। पुराने जमाने में ऐसा करते हुए आप छुआछूत के प्रतीक को तोड़ते हुए दिखाई दे सकते थे। लेकिन आज आप उसके पैरोकार ही दिखने लग जाते हैं।

चुनावों की तारीख तय होने के बाद मीडिया ने घोषित सा कर दिया कि योगी आदित्यनाथ अयोध्या या मथुरा से चुनाव लड़ेंगे। इस अटकल के पीछे प्रतीक का ही महत्व था। लेकिन उस वक्त मीडिया यह नहीं बता पाया था कि पंजाब के चुनाव की तारीख बदल जाएगी। पंजाब के चुनाव की तारीख बदलने का संबंध काशी से था। जो राजनीतिक दल रविदास जयंती के कारण मतदान की तारीख बदलवा रहे हैं वही अगर दलितों के साथ भोजन कर तस्वीरें भी जारी कर रहे हैं तो इससे बड़ा राजनीतिक विरोधाभास कुछ नहीं हो सकता है। उम्मीद है, अगले चुनाव तक तस्वीर बदलेगी और हमें ऐसे प्रतिगामी प्रतीकों की तस्वीर देखने नहीं मिलेगी।

The post छाप तिलक सब किन्हीं appeared first on Jansatta.



from राष्ट्रीय – Jansatta https://ift.tt/3GUNknw

No comments:

Post a Comment

Monkeypox In India: केरल में मिला मंकीपॉक्स का दूसरा केस, दुबई से पिछले हफ्ते लौटा था शख्स

monkeypox second case confirmed in kerala केरल में मंकीपॉक्स का दूसरा मामला सामने आया है। सूबे के स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि दुबई से प...