Monday, February 21, 2022

रूस-यूक्रेन तनाव : क्यों खिंचीं तलवारें, कहां फंस रहा पेच

रूस और यूक्रेन के बीच सीमा पर तनाव बढ़ता जा रहा है। यूक्रेन की सीमा पर रूसी सेना का जमावड़ा है। रूसी समर्थित अलगाववादी संगठन और यूक्रेन की सेना के बीच संघर्ष चल रहा है। बात बढ़ने लगी है। स्थिति इतनी गंभीर है कि नाटो देशों और रूसी सेना के बीच कभी भी युद्ध शुरू हो सकता है। विवाद यह है कि यूक्रन उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन यानी नाटो का सदस्य देश बनना चाहता है और रूस इसका विरोध कर रहा है। नाटो अमेरिका और पश्चिमी देशों के बीच एक सैन्य गठबंधन है, इसलिए रूस नहीं चाहता कि उसका पड़ोसी देश नाटो का मित्र बने। नाटो देशों पर ठने इस विवाद में ऐसे युद्ध की आशंका प्रबल हुई है, जिसमें एक से ज्यादा देश कूद सकते हैं। यूक्रेन संकट को लेकर भारत सतर्क बयान जारी कर रहा है।

कैसे शुरू हुआ टकराव

नवंबर 2013 में यूक्रेन की राजधानी कीव में तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच का विरोध शुरू हो गया। यानुकोविच को रूस का समर्थन था. जबकि अमेरिका-ब्रिटेन प्रदर्शनकारियों का समर्थन कर रहे थे। फरवरी 2014 में यानुकोविच को देश छोड़कर भागना पड़ा। इससे नाराज होकर रूस ने दक्षिणी यूक्रेन के क्रीमिया पर कब्जा कर लिया। वहां के अलगाववादियों को समर्थन दिया। अलगाववादियों ने पूर्वी यूक्रेन के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया। तब से रूस समर्थक अलगाववादियों व यूक्रेन की सेना में संघर्ष जारी है। क्रीमिया प्रायलीप को 1954 में तत्कालीन सोवियत संघ के नेता निकिता ख्रुश्चेव ने यूक्रेन को तोहफे में दिया था। 1991 में यूक्रेन अलग हुआ, तब से तनातनी चल रही है।

क्यों बढ़ रहा तनाव

यूक्रेन पश्चिमी देशों से रिश्ते बेहतर कर रहा है। रूस इसके खिलाफ है। यूक्रेन के नाटो से अच्छे संबंध हैं। रूस की मांग है कि नाटो यूरोप में अपने विस्तार पर रोक लगाए। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कई बार चेतावनी दी है कि अगर रूस के खिलाफ नाटो यूक्रेन की जमीन का इस्तेमाल करता है तो बुरे अंजाम होंगे। दूसरी ओर, रूस की चेतावनी पर नाटो ने कहा है कि रूस को इस प्रक्रिया में दखल देने का अधिकार नहीं है। रूस इसे अमेरिकी नेतृत्व में उसके प्रभावी क्षेत्र में सीधे हस्तक्षेप के रूप में देख रहा है। वर्ष 2015 में फ्रांस और जर्मनी की मध्यस्थता के साथ रूस और यूक्रेन में शांति कायम रखने को लेकर एक समझौता हुआ था, जिसे मिन्स्क समझौता कहा गया था। वह अभी भी कायम है।

किसके साथ खड़ा है भारत

रूस-यूक्रेन के विवाद में भारत की स्थिति बेहद महत्त्वपूर्ण है। रूस और अमेरिका दोनों भारत के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। भारत अभी भी अपने 55 फीसद हथियार रूस से खरीदता है, जबकि अमेरिका के साथ भारत के संबंध पिछले 10 साल में काफी मजबूत हुए हैं। जिस देश में यूक्रेन ने सबसे पहले फरवरी 1993 में एशिया में अपना दूतावास खोला वह भारत था।

तब से भारत और यूक्रेन के बीच व्यापारिक, रणनीतिक और राजनयिक संबंध मजबूत हुए हैं। यानी भारत इनमें से किसी भी देश को परेशान करने का जोखिम नहीं उठा सकता। दूसरी ओर, रूस ने अब तक भारत-चीन सीमा विवाद पर तटस्थ रुख अपनाया है। अगर भारत यूक्रेन का समर्थन करता है तो वह कूटनीतिक रूप से रूस को चीन के पक्ष में ले जाएगा। शायद यही कारण है कि हाल ही में जब अमेरिका सहित 10 देश संयुक्त राष्ट्र में यूक्रेन पर एक प्रस्ताव लेकर आए भारत ने किसी के पक्ष में मतदान नहीं किया। भारत के लिए चिंता की बात यह भी है कि इस समय यूक्रेन में करीब 20 हजार भारतीय फंसे हुए हैं, जिनमें से 18 हजार मेडिकल के छात्र हैं।

यूक्रेन का सामरिक महत्त्व

यूक्रेन रूस की पश्चिमी सीमा पर स्थित है। जब 1939 से 1945 तक चले द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान रूस पर हमला किया गया तो यूक्रेन एकमात्र ऐसा क्षेत्र था, जहां से रूस ने अपनी सीमा की रक्षा की थी। अब अगर यूक्रेन नाटो देशों के साथ चला गया तो रूस की राजधानी मास्को, पश्चिम से सिर्फ 640 किलोमीटर दूर होगी। फिलहाल यह दूरी करीब 1600 किलोमीटर है। दूसरी ओर, यूक्रेन के नाटो देश में शामिल होने की वजह एक सौ साल पुरानी है, जब अलग देश का अस्तित्व नहीं था। वर्ष 1917 से पहले रूस और यूक्रेन रूसी साम्राज्य का हिस्सा थे।

वर्ष 1917 में रूसी क्रांति के बाद, यह साम्राज्य बिखर गया और यूक्रेन ने खुद को एक स्वतंत्र देश घोषित कर दिया।हालांकि यूक्रेन मुश्किल से तीन साल तक स्वतंत्र रहा और 1920 में यह सोवियत संघ में शामिल हो गया। यूक्रेन के लोग हमेशा से खुद को स्वतंत्र देश मानते रहे। वर्ष 1991 में जब सोवियत संघ का विघटन हुआ तो यूक्रेन सहित 15 नए देशों का गठन हुआ। यूक्रेन शुरू से ही समझता है कि वह रूस से कभी भी अपने दम पर मुकाबला नहीं कर सकता और इसलिए वह एक ऐसे सैन्य संगठन में शामिल होना चाहता है जो उसकी आजादी को महफूज रख सके। इस कारण वह नाटो की ओर झुक रहा है।

किस कोशिश में रूस

रूस एक तरफ यूक्रेन को नाटो से दूर रखना चाहता है ताकि वह भविष्य में कभी भी उसके खिलाफ खड़े होने की ताकत न जुटा सके। वहीं दूसरी तरफ वह यूक्रेन की सीमा पर तनाव पैदा कर अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों को खत्म करवाना चाहता है। फिलहाल, यूक्रेन में अलगाववादियों ने वहां की जनता के बड़े हिस्से का समर्थन हासिल कर लिया है और वे लोग रूस में मिलने के लिए तैयार हैं। ये सभी उस हिस्से के लोग हैं, जिनकी सीमा रूस की सीमा से सटी हुई है। दूसरी तरफ, वर्ष 1997 में यूक्रेन-नाटो कमीशन बनाया गया था, जिससे यूक्रेन नाटो संगठन का हिस्सेदार बन सके। साल 2008 में यूक्रेन ने नाटो का हिस्सा बनने की इच्छा जताई थी।

वर्ष 2017 में यूक्रेन की संसद ने एक विधान पारित किया, जिसमें ये कहा गया कि नाटो की सदस्यता पाना यूक्रेन की विदेश नीति का एक बड़ा उद्देश्य है। दिसंबर 2021 में नाटो प्रमुख और यूक्रेन के राष्ट्रपति की मुलाकात हुई। इसके बाद नाटो को लेकर यूक्रेन की सक्रियता देख रूस ने सीमा पर अपनी फौजों को तैनात करना शुरू कर दिया।

क्या कहते हैं जानकार

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति और सुरक्षा जरूरी है। हर कोई ऐसा कोई भी कदम उठाने से बचे, जिससे तनाव बढ़ता हो। संतुलित और सुचारु राजनय अभी की जरूरत है। यह मुद्दा सिर्फ राजनयिक स्तर की वार्ता से ही सुलझ सकता है।

  • टीएस तिरुमूर्ति, संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि

रूस के यूक्रेन पर आक्रमण की आशंकाओं के कारण कच्चे तेल की तेज खरीदारी देखी गई। इस तरह का हमला अमेरिकी और यूरोपीय प्रतिबंधों को बढ़ा सकता है, जिससे रूसी निर्यात बाधित हो सकता है। अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल महंगा होता है तो इसका सीधा असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।

  • सी राजामोहन,अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ

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