Sunday, February 13, 2022

वेदों के लिए ‘सर्च इंजन’ बनाएंगे विद्यार्थी

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के नवोन्मेष प्रकोष्ठ और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआइसीटीई) की ओर से कई सालों से आयोजित किए जा रहे ‘स्मार्ट इंडिया हेकाथन’ में इस साल विद्यार्थियों को वेदों के लिए ‘सर्च इंजन’ बनाने का विषय भी दिया है। यह विषय भारतीय ज्ञान परंपरा और एआइसीटीई की ओर से दिया गया है।

नवोन्मेष प्रकोष्ठ की ओर से किए गए ट्वीट के मुताबिक वेदों के ज्ञान में कई सिद्धांत शामिल हैं जो आज भी उपयोगी और प्रासंगिक हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए इस साल होने जा रहे ‘स्मार्ट इंडिया हेकाथन’ में विद्यार्थियों को वेदों के लिए एक ‘सर्च इंजन’ विकसित करने को कहा गया है जो वैदिक साहित्य से शब्दों के प्रभावी रूप से खोज सके। इसमें कहा गया है कि यदि हम ‘इंद्र’ शब्द खोजते हैं, तो ‘सर्च इंजन’ वेदों में से उन सभी सूक्तों या उन सभी मंत्रों को सामने लाए जिनमें ‘इंद्र’ शब्द शामिल है। साथ ही यह ‘सर्च इंजन’ वेदों या संबंधित ग्रंथों के सभी सूक्तों, मंत्रों, मंडलों, कांडों आदि को भी सामने लाए जिनमें ‘इंद्र’ शब्द शामिल है।

इसके साथ ही यह ‘सर्च इंजन’ वैदिक डेटाबेस को विषयवार बनाने में मदद करे। इसका उद्देश्य एक ऐसा एप्लीकेशन तैयार करना भी है जो कृत्रिम बौद्धिमत्ता (एआइ) का उपयोग कर वैदिक ज्ञान को नई पीढ़ियों तक आसानी से पहुंचा सके। ‘स्मार्ट इंडिया हेकाथन’ की वेबसाइट के मुताबिक वेद बहुत विशाल हैं और एक ऐसे खोज इंजन की आवश्यकता है जो साहित्य के इस महासागर में से शब्दों और पाठ्य को खोजने के लिए उपयोग किया जा सके।

‘वेद’ एक एकल साहित्यिक कार्य का उल्लेख नहीं करता है, बल्कि साहित्य के एक विशाल संग्रह को इंगित करता है, जो कई शताब्दियों के दौरान तैयार हुए और मौखिक प्रसारण द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सौंपे गए। भारतीय पारंपरिक विचारों के अनुसार ‘वेद’ किसी मानव लेखक द्वारा रचित नहीं है। इसमें वैदिक भजन (सूक्त) या छंद (मंत्र) देखे जाते हैं और केवल ऋषियों द्वारा बोले जाते हैं। ये ऋषि न तो मंत्रों के लेखक हैं और न ही वे मंत्रों की सामग्री के लिए जिम्मेदार हैं।

यह सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया गया है कि वेद मानवता का सबसे पुराना उपलब्ध साहित्य है। संस्कृत भाषा में गद्य और काव्य के रूप में वेद को आधिकारिक ज्ञान माना गया है। ऐसा लगता है कि इसका अधिकार कई सहस्राब्दियों तक निर्विवाद रहा है और इसे विवाद के मामलों में अंतिम याधिकरण माना जाता है चाहे वह धर्म या दर्शन या सामाजिक रीति-रिवाजों में हो।

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