नूपुर शर्मा विवाद के दौरान एक्टिव हुआ ‘सर तन से जुदा’ का नारा लगाने वाला गैंग रुकने का नाम नहीं ले रहा है। उदयपुर में कन्हैयालाल और अमरावती में उमेश कोल्हे की हत्या के बाद लगातार लोगों को जान से मारने की धमकी की घटनाएं सामने आ रही हैं। इस बीच सबके दिमाग में एक ही सवाल है कि ‘सर तन से जुदा’ नारे की उत्पत्ति कहां से हुई और इसके पीछे की सोच क्या है। इसकी पूरा कहानी पाकिस्तानी मूल के लेखक तारेक फतेह ने बताई है।
एक टीवी चैनल पर चल रही डिबेट में उन्होंने कहा, “यह इस पर निर्भर करता है कि हिंदुस्तान के मुसलमान किसको हीरो मानते हैं। अगर वो औरंगजेब के मकबरे पर चादर चढ़ा रहे हैं, तो वो इस बात पर विश्वास करते हैं कि दारा शिकोह की गर्दन काटने को वो सही मानते हैं। सर तन से जुदा उसी ने शुरू किया। सबसे प्रैक्टिकल और हिस्टोरिकली रिकॉर्डेड सर तन से जुदा शुरू हुआ, जब औरंगजेब ने अपने बड़े भाई दारा शिकोह की गर्दन काट दी। तभी आप देखिएगा कि भारत का कोई भी मुसलमान दारा शिकोह को नहीं मानता उसको याद नहीं करता, लेकिन औरंगजेब के मकबरे पर चादर चढ़ाते हैं।”
तारेक फतेह ने सर तन से जुदा नारे को लेकर कहा, “इसके पीछे जो सोच है उसकी रूट गजवा ए हिंद से जुड़ी हैं। इसके मुताबिक, रोज ए कयामत उस वक्त तक नहीं आएगी, जब तक कि तमाम हिंदू मुसलमान ना हो जाएं और सारे हिंदू मंदिर ना खत्म हो जाएं।
उन्होंने आगे कहा, “तब रोज ए कयामत आएगी और आप लोग जहन्नम में जाएंगे और मैं, मेरे साथी जन्नत में जाएंगे, जहां हमारे लिए हुरें इंतेजार कर रही होंगी। मदरसों में ये पढ़ाया जाता है क्योंकि वहीं से मौलवी ट्रेंड होकर आएंगे और वो मस्जिदों के इमाम बनते हैं और आगे पढ़ाते हैं।”
उन्होंने कहा, “जब जियाउल हक का दौर आया और उसके बाद सऊदी रिवाइवल ऑफ सलफिज्म आया, तो उसका भारत में काफी असर हुआ और लोगों का लिबास और उठना-बैठना ये सब प्रभावित हुआ। फिर अपने आप को पहले हिंदुस्तानी नहीं समझने का ये डायरेक्ट रिजल्ट है। जब तक हम ये नहीं कहेंगे कि हम पहले हिंदुस्तानी और फिर मुसलमान हैं या पहले हम संविधान पर विश्वास करते हैं और फिर शरिया का कानून है।”
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