Wednesday, June 29, 2022

महाराष्ट्रः गहरे संकट में फंसे उद्धव ठाकरे, सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट पर रोक से किया इन्कार

राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के फ्लोर टेस्ट कराने के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाने से इन्कार कर दिया है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस परदीवाला की बेंच सभी पक्षों की दलीलों को 3 घंटे से ज्यादा वक्त तक सुना। उसके बाद फैसले को रात 9 बजे तक टाल दिया। फिर से बेंच बैठी तो सपाट फैसले में कहा कि फ्लोर टेस्ट पर वो रोक नहीं लगा रहे हैं। राज्यपाल ने जो आदेश दिया था उस पर अमल किया जाए। राज्यपाल ने गुरुवार सुबह 11 बजे फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया था।

शिवसेना नेता सुनील प्रभु की तरफ से पैरवी कर रहे वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि मंगलवार शाम को देवेंद्र फडणवीस गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी से मिलते हैं और बुधवार सुबह फ्लोर टेस्ट का आदेश जारी हो जाता है। उनका कहना था कि राकांपा के दो विधायक कोविड संक्रमित हैं और कांग्रेस के एक विधायक फिलहाल देश के बाहर हैं। उनका कहना था कि सुपरसॉनिक स्पीड से फ्लोर टेस्ट का आदेश जारी किया गया है। जबकि इसके जरिए ही पता लगाया जा सकता है कि कौन सी सरकार लोगों की इच्छा से बनी है।

सिंघवी का कहना था कि 16 विधायकों को अयोग्य घोषित करने की मांग पर अभी स्पीकर का फैसला आना बाकी है। अगर ये विधायक अयोग्य घोषित कर दिए जाते हैं तो असेंबली का गणित ही बदल जाएगा। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि अयोग्यता का मसला उनके पास लंबित है। हमें फैसला करना है कि स्पीकर का नोटिस वैध है भी या नहीं। लेकिन उस मामले की वजह से फ्लोर टेस्ट पर क्या असर पड़ने जा रहा है।

शिवसेना के वकील का कहना था कि एक तरफ कोर्ट ने अयोग्यता वाले मसले को लंबित रख दिया वहीं दूसरी तरफ फ्लोर टेस्ट कराया जा रहा है। ये दोनों ही बातें एक दूसरे की विरोधाभाषी हैं। उनका कहना था कि सारे मसलों पर कोर्ट ने 11 जुलाई तक यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। ऐसे में कल अगर फ्लोर टेस्ट होता है तो इससे गलत संदेश जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने सिंघवी से पूछा कि क्या आप इस बात को नहीं मानते की शिवसेना के 34 विधायकों ने उद्धव ठाकरे से अलग होने की चिट्ठी दस्तखत करके भेजी है। सिंघवी का कहना था कि इसकी पुष्टि कैसे की जा सकती है। गवर्नर से एक सप्ताह तक चिट्ठी को अपने पास रखा और फिर जब नेता विपक्ष देवेंद्र फडणवीस उनसे मिले तो वो हरकत में आ गए। उनका कहना था कि गवर्नर का हर फैसला अब कानूनी बहस का विषय है।

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सिंघवी का कहना था कि बागी विधायक पहले सूरत गए और फिर गुवाहाटी। वहां से वो ईमेल के जरिए अपनी बात कह रहे हैं। उन्हें स्पीकर पर भी भरोसा नहीं। दूसरी तरफ गवर्नर खुद कोविड संक्रमित रहे थे। लेकिन बीजेपी नेता से मिलते ही वो फौरन हरकत में आ गए। जबकि मामला सुप्रीम कोर्ट में है। उनका कहना था कि जो विधायक दल बदल कर रहे हैं वो कैसे लोगों का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं। कल अगर फ्लोर टेस्ट नहीं हुआ तो आसमान नहीं टूट पड़ेगा।

एडवोकेट नीरज किशन कौल ने शिंदे गुट की पैरवी करते हुए कहा कि पहला सवाल ये है कि स्पीकर को हटाया जाए या नहीं। जब आपकी वैधता ही सवालों के दायरे में हो तो आप ऐसे मामलों का फैसला कैसे कर सकते हैं। उन्होंने संवैधानिक बेंच के फैसका हवाला देकर कहा कि स्पीकर को अथॉरिटी नहीं है। इस मामले में गवर्नर को सारे अधिकार हैं। जब तक कि उन्हें गलत नीयत का दोषी न ठहरा दिया जाए। उनका कहना था कि सारे फ्लोर टेस्ट से खुश हैं केवल सरकार को छोड़कर।

गवर्नर की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि डिप्टी स्पीकर ने बागी विधायकों को दो दिन का नोटिस दिया था। अब ये लोग ही सवाल उठा रहे हैं कि गवर्नर ने फ्लोर टेस्ट के लिए केवल 24 घंटे का नोटिस दिया है। उन्होंने मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से कहा कि बागी गुट को जान से मारने की धमकी मिल रही हैं। इस पर कोर्ट ने कहा- इमोशनल बयान।



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