Saturday, April 30, 2022

बीजेपी को नहीं हरा सकता थर्ड फ्रंट, ममता को विकल्प बनाने के सवाल पर बोले प्रशांत किशोर

चुनावी रणनीति बनाने में माहिर प्रशांत किशोर का कहना है कि बीजेपी को शिकस्त देने का काम तीसरे मोर्चे से नहीं हो पाएगा। जो भी पार्टी नरेंद्र मोदी को हराना चाहती है उसे खुद को दूसरे विकल्प के तौर पर प्रस्तुत करना होगा। उनका कहना है कि कांग्रेस अभी ऐसा करने की स्थिति में नहीं है। लेकिन इससे भी इन्कार नहीं किया जा सकता है कि गांधी परिवार की देखरेख में चल रही पार्टी देश का दूसरा सबसे बड़ा राजनीतिक दल है। सारे देश में इसका ढांचा मौजूद है।

इंडिया टुडे से साक्षात्कार में किशोर ने कहा कि दूसरे नंबर का दल ही बीजेपी का हरा सकता है। कोई भी तीसरा या चौथा मोर्चा ऐसा करने में सक्षम नहीं हो सकता। उनका कहना था कि राज्यों के चुनाव परिणाम का 2024 के आम चुनाव से कोई संबंध नहीं है। इनको वहां से जोड़ना गलत है। एक सवाल के जवाब में उनका कहना था कि वो ये बताने की स्थिति में नहीं हैं कि 2024 में पीएम मोदी को कौन चुनौती दे सकता है। आज के हालात को देख यह अनुमान लगाना बेहद मुश्किल है।

हालांकि, प्रशांत का कहना था कि ऐसा नहीं है कि मोदी को चुनौती नहीं दी जा सकती। लेकिन अभी ये नहीं कहा जा सकता कि कौन सा नेता उन्हें पीएम की सीट से हटा सकता है। बकौल किशोर अगर हम 1980 में बैठकर वीपी सिंह के बारे में बात करते तो क्या कहा जा सकता था कि वो राजीव गांधी को चुनौती देने की स्थिति में होंगे। 1965 में क्या बता सकते थे कि राजनारायण कभी इंदिरा को कुर्सी से हटा सकते हैं। ऐसे ही आज के समय यह कह पाना बेहद मुश्किल भरा है।

उनका कहना था कि कांग्रेस बीजेपी को चुनौती दे सकती है। लेकिन इसके लिए उन्हें बदलाव करने होंगे। ये नहीं कहा जा सकता कि 2024 में कांग्रेस चुनौती पेश नहीं कर सकती। दरअसल उसे सवाल किया गया था कि क्या वो ममता बनर्जी को थर्ड फ्रंट के नेता को तौर पर तैयार कर रहे हैं। ध्यान रहे कि कांग्रेस के साथ पीके की कई बैठकें हुई थीं। लेकिन बाद में वो पार्टी में शामिल होने से इन्कार कर गए।

पीके का कहना था कि कांग्रेस ने जो भूमिका उन्हें देने की बात की वो उन्हें मंजूर नहीं है। हालांकि उनका कहना था कि जनपथ से उन्हें फिर से बुलावा आएगा तो वो जरूर बात करेंगे। फिलहाल कांग्रेस को उनसे कहीं ज्यादा अपने सुधारों पर अमल की जरूरत है।



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मान पर नरम, योगी पर गर्म? जानें- क्या हुआ जब जजों के कार्यक्रम में ममता का यूपी CM से सामना

सीएम और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीशों के एक कार्यक्रम में जब बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का आमना-सामना हुआ तो दोनों की मुलाकात दिलचस्प रही। ममता बनर्जी, योगी के साथ तल्खी से ही मिलती दिखीं।

सीएम योगी और ममता बनर्जी एक ही पंक्ति में बैठे हुए थे। योगी की कुर्सी ममता बनर्जी से आगे थी, जहां जाने के दौरान योगी और ममता आमने-सामने आ गए। वहीं जब ममता बनर्जी के साथ पंजाब के सीएम भगवंत मान की मुलाकात हुई तो दोनों गर्मजोशी से मिलते नजर आए।

सिर्फ ममता ही अपनी धुर विरोधियों ने नहीं टकराईं बल्कि कई नेताओं का इस सम्मेलन में आमना-सामना हुआ। इसमें अरविंद केजरीवाल- मनोहर लाल खट्टर, भगवंत मान- खट्टर, शिवराज सिंह चौहान- भूपेश बघेल जैसे मुख्यमंत्रियों के नाम भी शामिल हैं।

manohar lal khattar, bhagwant mann
हरियाणा सीएम मनोहर लाल खट्टर और पंजाब सीएम भगवंत मान

विज्ञान भवन में राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू और भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना भी शामिल हुए। जहां पीएम मोदी ने अपने संबोधन में कहा कि हम न्यायिक व्यवस्था में सुधार के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। सरकार न्यायिक बुनियादी ढांचे में सुधार और उन्नयन के लिए भी काम कर रही है।

पीएम ने कहा- “भारत सरकार न्यायिक प्रणाली में टेक्नोलॉजी को डिजिटल इंडिया मिशन का एक अनिवार्य हिस्सा मानती है। ई-कोर्ट परियोजना आज मिशन मोड में लागू की जा रही है। हमें अदालतों में स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देना चाहिए। इससे देश के आम नागरिकों का न्याय व्यवस्था में विश्वास बढ़ेगा”।

पीएम मोदी ने कहा कि 2015 में सरकार ने लगभग 1800 कानूनों की पहचान की जो अप्रासंगिक हो गए थे। इनमें से केंद्र ने 1450 कानूनों को खत्म कर दिया। वहीं राज्यों द्वारा केवल 75 कानूनों को समाप्त किया गया है।

वहीं सीजेआई रमना ने कहा कि संबंधित लोगों की जरूरतों और आकांक्षाओं को शामिल करते हुए गहन बहस और चर्चा के बाद कानून बनाया जाना चाहिए। अक्सर कार्यपालकों के गैर-प्रदर्शन और विधायिकाओं की निष्क्रियता के कारण मुकदमेबाजी होती है।



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LIC से भी बड़ा IPO लाने की तैयारी में मुकेश अंबानी, जानें- रिलांयस Jio का प्‍लान

अब तक का बससे बड़ा LIC का आईपीओ अगले हफ्ते देश में दस्‍तक दे रहा है। जिसमें सरकार अपनी 3.5 फीसद की हिस्‍सेदारी बेच रही है। सरकार की योजना इस आईपीओ से प्राइज बैंड के ऊपरी स्‍तर पर 21000 करोड़ रुपये जुटाने की है। वहीं अब एक रिपोर्ट के अनुसार, मुकेश अंबानी की रिलायंस जियो कंपनी का भी आईपीओ आने की तैयारी में है। अगर यह आता है तो यह देश का सबसे बड़ा आईपीओ होगा।

मुकेश अंबानी रिलायंस जियो और रिलायंस रिटेल वेंचर्स के लिए इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (आईपीओ) लॉन्च करने की तैयारी कर रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) के अध्यक्ष कंपनी की वार्षिक आम बैठक (AGM) के दौरान आईपीओ को लेकर घोषणा कर सकते हैं।

कितनी राशि जुटाने की योजना
मुकेश अंबानी की मेगा योजना में उनके दूरसंचार उद्यम रिलायंस जियो प्लेटफॉर्म (RJPL) और सहायक रिलायंस रिटेल वेंचर्स लिमिटेड (RRVL) के लिए अलग प्रारंभिक शेयर बिक्री शामिल है। हिंदू बिजनेसा लाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, दो कंपनियां आईपीओ में 50,000 करोड़ रुपये से लेकर 75,000 करोड़ रुपये जुटाने की तैयारी में हैं। ऐसे में अब तक का यह सबसे बड़ा प्रारंभिक शेयर बिक्री वाला आईपीओ हो जाएगा।

रिलायंस जियो का आईपीओ कब हो सकता है लॉन्‍च
रिलायंस जियो के शेयर अमेरिकी शेयर बाजार नैस्डैक में भी लिस्ट हो सकते हैं। टेक कंपनियों के लिए नैस्डैक दुनिया का सबसे बड़ा शेयर बाजार है। Reliance Jio IPO को Reliance Retail Ventures Limited के शेयरों के बाजार में आने के बाद, दिसंबर 2022 में लॉन्च किया जा सकता है।

अब तक भारत के बड़े आईपीओ
भारत में 2021 के दौरान पेटीएम ने अपना आईपीओ 18,300 करोड़ रुपये का सबसे बड़ा आईपीओ पेश किया था। इसके पहले 2010 में कोल इंडिया लगभग 15,500 करोड़ रुपये और रिलायंस पावर 2008 में 11,700 करोड़ रुपये का आईपीओ पेश किया था।

LIC IPO
अब इस कड़ी में सबसे बडा आईपीओ भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) का जुड़ने वाला है, जो अगले हफ्ते भारत में लॉन्‍च होगा। इसकी प्राइस बैंड के ऊपरी छोर पर सरकार एलआईसी के आईपीओ के जरिए करीब 21,000 करोड़ रुपये जुटाएगी। बता दें कि करीब 20,557 करोड़ रुपये के कम आकार के बाद भी एलआईसी का आईपीओ देश में अब तक का सबसे बड़ा आरंभिक सार्वजनिक निर्गम होने जा रहा है।



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महाराष्ट्रः RSS वर्कर ने राहुल गांधी को भेजा 1500 का मनी ऑर्डर, जानें भिवंडी की कोर्ट ने क्यों लगाया था जुर्माना

कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि मामले में आरएसएस नेता राजेश कुंटे ने राहुल गांधी को 1500 रूपए जुर्माना भर दिया है। राजेश कुंटे की तरफ से राहुल के ऑफिस को 1500 रुपए का मनी ऑर्डर मिल गया है। इस बात की जानकारी कुंटे के वकील गणेश धारगलकर ने शुक्रवार (29 अप्रैल 2022) को दी। दरअसल, भिवंडी कोर्ट ने कुंटे को आदेश दिया था कि वो राहुल को जुर्माने के तौर पर ये राशि दें।

राहुल गांधी के खिलाफ दायर मानहानि केस में 21 अप्रैल को हुई सुनवाई के दौरान राजेश कुंटे ने कोर्ट में स्थगन याचिका दायर की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था। महाराष्ट्र के ठाणे जिले के भिवंडी की न्यायिक मजिस्ट्रेट जेवी पालीवाल ने आरएसएस के स्थानीय कार्यकर्ता राजेश कुंटे को कांग्रेस नेता को 1500 रूपए का भुगतान करने का आदेश दिया था।

10 मई को होगी अगली सुनवाई: मार्च में मामले पर सुनवाई के दौरान कुंटे ने कोर्ट से अनुरोध किया था कि वो एक और गवाह पेश करना चाहते हैं लेकिन कोर्ट ने उनकी मांग को खारिज करते हुए सुनवाई स्थगित कर दी थी। उस वक्त कोर्ट ने कुंटे को आदेश दिया था कि वो राहुल गांधी को जुर्माने के तौर पर 500 रुपए दें लेकिन उन्होंने उस वक्त जुर्माना नहीं चुकाया था। मानहानि के इस मामले की सुनवाई दिन-प्रतिदिन के आधार पर होनी थी, मगर कोर्ट मार्च और अप्रैल में दो बार स्थगित हुई जिसके बाद जुर्माने की राशि 1500 रुपए हो गई। कोर्ट ने 10 मई को अगली सुनवाई के दौरान शिकायतकर्ता को अपने गवाह और सबूत पेश करने को कहा है।

राजेश कुंटे ने 2014 में ठाणे की भिवंडी बस्ती में राहुल गांधी का भाषण सुनने के बाद उनके खिलाफ मामला दर्ज कराया था। अपने भाषण में कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया था कि महात्मा गांधी की हत्या के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का हाथ था।

दोषी पाए जाने पर दो साल की जेल और जुर्माना: राहुल गांधी ने मामले को रद्द करने के लिए पहले बॉम्बे हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, लेकिन बाद में केस लड़ने का फैसला किया। मजिस्ट्रेट ने राहुल गांधी पर जून 2018 में भारतीय दंड संहिता की धारा 499 (मानहानि) और 500 (मानहानि की सजा) के तहत आरोप तय किए। इस मामले में दोषी पाए जाने पर अधिकतम दो साल की जेल और जुर्माना लग सकता है। निचली अदालत में राहुल गांधी के वकील नारायण अय्यर ने कहा कि 21 अप्रैल को लगातार दूसरी बार शिकायतकर्ता ने सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध किया था।



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राजनीतिक बदले और नौकरशाही पर दबाव का जरिया बन गई हैं PIL- सीजेआई रमन्ना बोले

भारत के मुख्य न्यायधीश एनवी रमना ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा है कि पीआईएल, राजनीतिक बदले और नौकरशाही पर दबाव का जरिया बन गई है। उन्होंने कहा कि जनहित याचिकाओं के दुरुपयोग के कारण अदालतें अब जनहित याचिकाओं पर विचार करने के लिए सतर्क हो गई हैं।

सीजेआई ने दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित मुख्यमंत्रियों और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन में ये बातें कहीं। सीजेआई ने कहा- “तुच्छ मुकदमेबाजी का निर्णय करना भी चिंता का विषय है। जनहित याचिका अब व्यक्तिगत हित के लिए मुकदमेबाजी में बदल रही है। कई बार जनहित याचिका का दुरुपयोग परियोजनाओं को रोकने या सार्वजनिक अधिकारियों पर दबाव डालने के लिए किया जाता है। इन दिनों जनहित याचिका किसी ऐसे व्यक्ति के लिए एक उपकरण बन गई है जो राजनीतिक बदला लेना चाहता है”।

इसके अलावा सीजेआई ने संसद द्वारा कानून पारित होने से पहले बहस करने की भी वकालत की। सीजेआई ने कहा- “यदि विधायिका लोगों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए विचार करके कानून पारित करती है, तो मुकदमेबाजी की गुंजाइश कम से कम हो जाती है। विधायिका से यह अपेक्षा की जाती है कि वह कानून बनाने से पहले जनता के विचारों की मांग करे और उसपर बहस करे”।

सीजेआई पीएम मोदी के सामने ही सख्त रूख अपनाते दिखे। इससे पहले भी सीजेआई रमना न्यायिक व्यवस्था में कमियों को लेकर कई बार सार्वजनिक रूप से बोल चुके हैं। लंबित मामलों के लिए न्यायपालिका को अक्सर दोषी ठहराए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि प्रत्येक दिन दर्ज और निपटाए गए मामलों की संख्या अकल्पनीय है।

उन्होंने कहा कि अवमानना ​​याचिकाएं अदालतों पर बोझ की एक नई श्रेणी हैं। ये सरकारों की तरफ से अवज्ञा का प्रत्यक्ष परिणाम है। सीजेआई ने कहा- “न्यायिक घोषणाओं के बावजूद सरकारों द्वारा जानबूझकर निष्क्रियता लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है। हालांकि नीति-निर्माण हमारा अधिकार क्षेत्र नहीं है, यदि कोई नागरिक अपनी शिकायत को दूर करने के लिए प्रार्थना के साथ अदालत में आता है, तो अदालतें ना नहीं कह सकतीं…।”



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पेट्रोल-डीजल पर टैक्‍स: 8 साल में केंद्र ने वसूले 18 लाख करोड़, राज्‍यों को म‍िले 14 लाख करोड़ रुपए

Tax on Petrol-Diesel in India: भारत में तेल के दाम फिलहाल आसमान में हैं। पेट्रोल हो या डीजल…इनके रेट ने लोगों का बजट बिगाड़ रखा है। पर सरकारों को इसके जरिए आने वाले टैक्स से मोटी कमाई हुई है। पिछले आठ साल की बात करें तो केंद्र सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर टैक्‍स से इस दौरान 18 लाख करोड़ रुपए से अधिक (18,23,315 लाख करोड़ रुपए) हासिल किए, जबकि राज्यों को इतने ही समय में 14 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा (1426048 लाख करोड़ रुपए) की कमाई हुई। आंकड़े बताते हैं कि साल 2015-16 से लगातार हर साल केंद्र की कमाई राज्‍यों से ज्‍यादा रही है।

पेट्रोलियम पर कितना टैक्स?: दरअसल, हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी मुख्यमंत्रियों के साथ कोरोना पर समीक्षा बैठक के दौरान तेल के मुद्दे पर भी बात की थी। उन्होंने इस दौरान प.बंगाल और केरल समेत गैर-बीजेपी शासित सूबों से पेट्रोल-डीजल पर वैट कम करने की अपील की थी। मोदी की इस गुजारिश ने तेल के खेल में उबाल सा ला दिया।

प्रति लीटर पेट्रोल/डीजल पर कितना टैक्स?:

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने ट्वीट कर पेट्रोलियम पर लगने वाले टैक्स में केन्द्र और राज्यों के हिस्से की तरफ भी सबका ध्यान खींचा, जहां टैक्स के बोझ का पलड़ा केन्द्र सरकार की तरफ झुका हुआ नजर आता है। इससे पहले कि हम टैक्स की इस टक्कर का जिक्र करें, पहले ये समझ लेते हैं कि आपको मिलने वाले पेट्रोल डीजल की बेस कीमत और टैक्स का हिसाब किताब क्या है।

पेट्रोल डीजल
बेस प्राइस 56.32 57.94
ढुलाई चार्ज 0.2 0.22
एक्साइज़ ड्यूटी 27.9 21.8
डीलर कमीशन 3.86 2.59
वैट 17.13 14.12
अंतिम खुदरा मूल्य 105.41 96.67

किसका कितना टैक्स?: तेल पर टैक्स के खेल को और ज्यादा विस्तार से समझने के लिए एक कदम आगे बढ़ते हुए अब यह जान लेते हैं कि केन्द्र और राज्य सरकारें हर साल पेट्रोलियम उत्पादों पर कर लगा कर कितनी कमाई करती हैं:

किसकी कितनी कमाई?:

वित्तीय वर्ष सेंट्रल एक्साइज राज्यों का वैट/ बिक्रीकर
2014-15 99068 137157
2015-16 178477 142807
2016-17 242691 166414
2017-18 229716 185850
2018-19 214369 201265
2019-20 223057 200493
2020-21 372970 202937
2021-22 262967 189125

*कीमतें करोड़ रुपये में

*सोर्स- PPAC

किस राज्य में कितना टैक्स?: अब बात चल ही निकली है तो जरा इस नक्शे के जरिए ये भी समझ लेते हैं कि किस राज्य में पेट्रोल पर कितने फीसदी का टैक्स अदा करना पड़ता है।

पेट्रोल: प्रति 100 रुपए पर टैक्स

लद्दाख- 44.60

जम्मू-कश्मीर-45.90

हिमाचल- 44.40

पंजाब- 44.60

हरियाणा- 45.10

राजस्थान- 50.80

दिल्ली- 45.30

उत्तराखंड- 44.10

उत्तर प्रदेश- 45.20

गुजरात- 44.50

मध्य प्रदेश- 50.60

छत्तीसगढ़- 48.30

बिहार- 50.00

झारखंड- 47.00

पश्चिम बंगाल- 48.70

महाराष्ट्र- 52.50

आंध्र प्रदेश- 52.40

तेलंगाना- 51.60

कर्नाटक- 48.10

तमिलनाडु- 48.90

केरल- 50.20

ओडिशा- 48.90

गोवा-45.80

सिक्किम- 46.00

त्रिपुरा- 45.80

आसाम- 45.40

मेघालय- 42.50

मणिपुर- 47.70

मिजोरम- 43.80

नगालैंड- 46.60

अरुणांचल प्रदेश- 42.90

कौन उठाएगा नुकसान?: जाहिर है कि नवंबर 2021 में पेट्रोलियम उत्पादों पर एक्साइज ड्यूटी घटाने के बावजूद करों में केन्द्र सरकार का हिस्सा राज्यों की तुलना में कहीं ज्यादा है। ऐसे में अगर पेट्रोल-डीजल की कीमतों को कोरोना काल से पहली की दर पर लाना है तो केन्द्र और राज्य सरकारों को करीब 92 हजार करोड़ के राजस्व हानि के लिए तैयार रहना होगा…अब देखने वाली बात ये होगी कि इस नुकसान के लिए कौन तैयार होता है..केन्द्र या राज्य या दोनों में से कोई नहीं।



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बीजेपी को नहीं हरा सकता थर्ड फ्रंट, ममता को विकल्प बनाने के सवाल पर बोले प्रशांत किशोर

चुनावी रणनीति बनाने में माहिर प्रशांत किशोर का कहना है कि बीजेपी को शिकस्त देने का काम तीसरे मोर्चे से नहीं हो पाएगा। जो भी पार्टी नरेंद्र मोदी को हराना चाहती है उसे खुद को दूसरे विकल्प के तौर पर प्रस्तुत करना होगा। उनका कहना है कि कांग्रेस अभी ऐसा करने की स्थिति में नहीं है। लेकिन इससे भी इन्कार नहीं किया जा सकता है कि गांधी परिवार की देखरेख में चल रही पार्टी देश का दूसरा सबसे बड़ा राजनीतिक दल है। सारे देश में इसका ढांचा मौजूद है।

इंडिया टुडे से साक्षात्कार में किशोर ने कहा कि दूसरे नंबर का दल ही बीजेपी का हरा सकता है। कोई भी तीसरा या चौथा मोर्चा ऐसा करने में सक्षम नहीं हो सकता। उनका कहना था कि राज्यों के चुनाव परिणाम का 2024 के आम चुनाव से कोई संबंध नहीं है। इनको वहां से जोड़ना गलत है। एक सवाल के जवाब में उनका कहना था कि वो ये बताने की स्थिति में नहीं हैं कि 2024 में पीएम मोदी को कौन चुनौती दे सकता है। आज के हालात को देख यह अनुमान लगाना बेहद मुश्किल है।

हालांकि, प्रशांत का कहना था कि ऐसा नहीं है कि मोदी को चुनौती नहीं दी जा सकती। लेकिन अभी ये नहीं कहा जा सकता कि कौन सा नेता उन्हें पीएम की सीट से हटा सकता है। बकौल किशोर अगर हम 1980 में बैठकर वीपी सिंह के बारे में बात करते तो क्या कहा जा सकता था कि वो राजीव गांधी को चुनौती देने की स्थिति में होंगे। 1965 में क्या बता सकते थे कि राजनारायण कभी इंदिरा को कुर्सी से हटा सकते हैं। ऐसे ही आज के समय यह कह पाना बेहद मुश्किल भरा है।

उनका कहना था कि कांग्रेस बीजेपी को चुनौती दे सकती है। लेकिन इसके लिए उन्हें बदलाव करने होंगे। ये नहीं कहा जा सकता कि 2024 में कांग्रेस चुनौती पेश नहीं कर सकती। दरअसल उसे सवाल किया गया था कि क्या वो ममता बनर्जी को थर्ड फ्रंट के नेता को तौर पर तैयार कर रहे हैं। ध्यान रहे कि कांग्रेस के साथ पीके की कई बैठकें हुई थीं। लेकिन बाद में वो पार्टी में शामिल होने से इन्कार कर गए।

पीके का कहना था कि कांग्रेस ने जो भूमिका उन्हें देने की बात की वो उन्हें मंजूर नहीं है। हालांकि उनका कहना था कि जनपथ से उन्हें फिर से बुलावा आएगा तो वो जरूर बात करेंगे। फिलहाल कांग्रेस को उनसे कहीं ज्यादा अपने सुधारों पर अमल की जरूरत है।



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Friday, April 29, 2022

भागवत के बयान पर डिबेट: संबित पात्रा ने पूछा- मुसलमान पत्‍थरबाज है क्‍या? विवेक श्रीवास्तव बोले- आप ही मजबूर करते हैं

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने देश के कई हिस्सों में विभिन्न समूहों के बीच हुई हिंसा पर बात करते हुए कहा था कि हिंसा से किसी भी समाज का फायदा नहीं हो सकता है। उन्होंने ये भी कहा था कि जिस समाज को हिंसा प्रिय है, वर्तमान में वह अपने अंतिम दिन गिन रहा है। मोहन भागवत के इस बयान पर एक टीवी डिबेट के दौरान बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने जब पूछा कि मुसलमान पत्‍थरबाज है क्‍या? इसका जवाब देते हुए सीपीआई नेता विवेक श्रीवास्तव ने कहा कि आप ही मजबूर करते हैं।

डिबेट के दौरान रामनवमी, हनुमान जयंती पर हुई हिंसा और धर्म के नाम पर खरगोन, करौली और जहांगीरपुरी में हुई हिंसा पर बात करते हुए सीपीआई नेता विवेक श्रीवास्तव ने कहा कि अगर किसी के घर पर बुलडोजर चलाया जाएगा तो पत्थरबाजी उचित है। अगर किसी पर उंगली उठाई जाएगी तो वो पत्थरबाजी करेगा। इसके जवाब में संबित पात्रा ने पूछा कि कि क्या अगर मुस्लिम इलाकों में राम और हनुमान की शोभायात्रा जाएगी तो पत्थर मारा जाएगा?

इस दौरान सीपीआई नेता ने उदाहरण देते हुए कहा कि देश में 85 प्रतिशत हिंदू सशक्त हैं। सभी ऊंचे पदों पर हिंदू बैठे हैं वो भी अपर कास्ट हिंदू। इस तर्क के जवाब में बीजेपी प्रवक्ता ने कहा कि क्या आपको लगता है कि मुसलमान पत्‍थरबाज है क्‍या? इस सवाल के जवाब में विवेक श्रीवास्तव ने कहा कि आप ही उन्हें मजबूर करते हैं।

पूरे धर्म को क्यों बदनाम करते हैं? डिबेट के दौरान संबित पात्रा से जब ये पूछा गया कि मुस्लिमों में भी सिर्फ कुछ लोग ही अपराधी हो सकते हैं, इसके आधार पर आप पूरे धर्म और समाज को क्यों बदनाम करते हैं? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि पीएम मोदी की कोई भी योजना हो चाहे वो उज्ज्वला योजना हो या सुकन्या योजना, उसका फायदा किसी का नाम-धर्म देखकर नहीं दिया जाता है। संबित पात्रा ने कहा कि सभी योजनाओं का लाभ सलमा, राम, रहीम सभी को मिलता है, ऐसे में हम धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करते हैं।

वहीं दूसरी ओर सीपीआई नेता विवेक श्रीवास्तव ने कहा कि कई दलित भेदभाव का शिकार होने के बाद इस्लाम में परिवर्तित हुए पर उनकी आर्थिक हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। जिसके जवाब में संबित पात्रा ने सवाल उठाया कि दलित मुसलमान क्या होता है? क्या मुसलमानों में भी जातिवाद है क्या?

क्या कहा था मोहन भागवत ने? गुरुवार (28 अप्रैल 2022) को महाराष्ट्र के अम​रावती जिले में एक कार्यक्रम के दौरान संघ संचालक मोहन भागवत ने कहा, “हिंसा से किसी का भला नहीं होता है। हमें हमेशा अहिंसक और शांतिप्रिय होना चाहिए। इसके लिए सभी समुदायों को एक साथ लाना और मानवता की रक्षा करना जरूरी है। हम सभी को इस काम को प्राथमिकता के आधार पर करने की जरूरत है।”



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कश्‍मीरी पंडितों पर डिबेट के दौरान हंस पड़े आसिफ मोहम्‍मद खान तो भड़क गए संबित पात्रा, अनुराग भदौरिया बजाने लगे घंटी

कश्मीरी पंडितों के मुद्दे पर एक टीवी डिबेट में भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा उस वक्त भड़क गए जब आसिफ मोहम्मद खान डिबेट के दौरान हंस पड़े। आसिफ मोहम्मद खान पर निशाना साधते हुए संबित पात्रा ने कहा कि ऐसा क्यों होता है कि जब हम कश्मीरी पंड़ितों के मुद्दे पर बात करते हैं तो आप लोग हंसते हैं, ये हंसने का विषय नहीं है।

न्यूज18 के डिबेट शो ‘आर-पार’ के दौरान, संबित पात्रा ने कहा, “क्या कश्मीरी पंडितों का ये अधिकार नहीं है कि 32 वर्षों तक जो कुछ उनके साथ हुआ है, उस पर बात की जाए, उस पर चर्चा की जाए। आज भी इस मुद्दे पर डिबेट में कुछ लोग ठहाके मारकर हंसते हैं। अगर मैं मुसलमानों के किसी विषय पर हंस दूं, हालांकि, मैं ऐसा करूंगा नहीं। लेकिन अगर मैं ऐसा कर दूं तो फतवा जारी हो जाएगा।”

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने सपा प्रवक्ता अनुराग भदौरिया के बार-बार घंटी बजाने पर निशाना साधा तो सपा प्रवक्ता ने पलटवार करते हुए कहा कि अब इनको घंटी बजाने से भी दिक्कत होने लगी है क्या? दूसरी तरफ, बुलडोजर एक्शन पर भी शो के दौरान तीखी बहस देखने को मिली। जब एंकर ने सपा प्रवक्ता से पूछा कि बुलडोजर से लेकर लाउडस्पीकर तक… क्या योगी मॉडल की देश को भी जरूरत है? इस पर अनुराग भदौरिया ने कहा, “मॉडल की बात करेंगे तो सबसे ज्यादा पेपर लीक उत्तर प्रदेश में होता है।”

योगी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, “मेडिकल के सामान में सबसे ज्यादा घोटाला यूपी में ही हुआ है।” उन्होंने भाजपा पर आरोप लगाया कि कि सत्ताधारी दल कहता है कि दूसरे धर्म के लोग कानून का पालन नहीं करते हैं। वहीं, उनके सवाल का जवाब देते हुए संबित पात्रा ने कहा, “जैन धर्म के लोग कभी किसी को डिस्टर्ब करने की कोशिश नहीं करते हैं। बौद्ध धर्म के लोग शांतिप्रिय लोग हैं और उनको डिबेट में घसीटने की समाजवादी पार्टी कुचेष्टा कर रही है। इसकी मैं निंदा करता हूं।”



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कोरोना से जंग: 12-17 साल के बच्चों के लिए सीरम इंस्टीट्यूट की कोवोवैक्स को मिली मंजूरी

राष्ट्रीय टीकाकरण तकनीकी सलाहकार समूह (NTAGI) ने सीरम इंस्टीट्यूट के कोवोवैक्स को 12-17 साल के आयुवर्ग के बच्चों पर इस्तेमाल के लिए मंजूरी दे दी है। न्यूज एजेंसी एएनआई ने सूत्रों के हवाले से यह जानकारी दी है। टीकाकरण कब से शुरू होगा, इस बारे में अभी कोई जानकारी सामने नहीं आई है। इसके पहले, डीजीसीआई ने 6-12 साल के बच्चों के लिए वैक्सीन लगाने को मंजूरी दी थी। इस आयुवर्ग के बच्चों के लिए भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को मंजूरी मिली है। यह फैसला ट्रायल के नतीजों के बाद लिया गया था।

कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए बीते बुधवार को पीएम नरेंद्र मोदी ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ समीक्षा बैठक की थी। इस दौरान उन्होंने टीकाकरण अभियान पर जोर देने की बात कही थी। ऐसे में कोवोवैक्स को मंजूरी मिलने के बाद इस अभियान में और भी तेजी आने की उम्मीद की जा सकती है।

स्कूलों के पूरी तरह खुल जाने के बाद बच्चों के माता-पिता को कोरोना को लेकर खासी चिंता थी। हालांकि, बच्चों के लिए वैक्सीन को मंजूरी मिलने के बाद माता-पिता राहत की सांस ले सकते हैं। 6 से 12 साल के बच्चों के लिए कोवैक्सीन, 5 से 12 साल के बच्चों के लिए कोर्वेवैक्स और 12 साल से ऊपर के बच्चों के लिए ZyCoV-D के इस्तेमाल को मंजूरी मिली है।

बता दें कि कोरोना के खिलाफ जारी जंग में मजबूती से कदम बढ़ाते हुए केंद्र सरकार ने बूस्टर डोज को लेकर बड़ा ऐलान किया था। 18 साल से अधिक उम्र के सभी वयस्क प्राइवेट वैक्सीनेशन सेंटरों पर प्रीकॉशन डोज लगवा सकते हैं। यह अभियान 10 अप्रैल से शुरू हो चुका है। जो लोग 18 साल से अधिक उम्र के हैं और कोरोना वैक्सीन की दूसरी खुराक लिए 9 महीने का समय बीत चुका है, वे प्रीकॉशन डोज ले सकते हैं।

देश की लगभग 96 प्रतिशत आबादी को कोविड-19 रोधी टीके की पहली खुराक दी जा चुकी है। हालांकि, अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स के वैक्सीन ट्रैकर के हिसाब से भारत में यह आंकड़ा 73 फीसदी है।



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पीएम मोदी के साथ मीटिंग में केजरीवाल के आरामदायक पोज पर छिड़े विवाद को लेकर शशि थरूर ने लिख डाली कविता

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ हुई वर्चुअल बैठक में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के तौर तरीकों को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। भारतीय जनता पार्टी के बाद अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने भी केजरीवाल की बैठने की मुद्रा को लेकर तंज कसा है। उन्होंने इस पूरे वाकिए पर कविता ही लिख डाली और अरविंद केजरीवाल के साथ भाजपा पर भी चुटकी ली है।

शशि थरूर अक्सर इंग्लिश के ऐसे शब्द इस्तेमाल करते हैं जिनका उपयोग आमतौर पर लोग कम ही करते हैं। अपनी इस कविता में भी उन्हों ऐसे ही शब्दों का इस्तेमाल किया है। कविता में उन्होंने कहा, “एक बार दिल्ली के एक मुख्यमंत्री थे, जिन्होंने सिर से लेकर अपना पेट तक फैलाया। ऑनस्क्रीन शरीर को ऐसा फैलाया कि दब गई बीजेपी…।”

भाजपा ने किया था अरविंद केजरीवाल पर हमला
भारतीय जनता पार्टी ने अपने ट्विटर अकाउंट से इस वाकिए का वीडियो क्लिप शेयर कर अरविंद केजरीवाल पर हमला बोला था। वीडियो शेयर करते हुए उन्होंने लिखा था- “मैनरलेस सीएम ऑफ दिल्ली।” बीजेपी के सूचना और प्रौद्योगिक विभाग के प्रभारी अमित मालवीय ने बैठक का वीडियो ट्वीट करते हुए कहा, “अरविंद केजरीवाल अपने असभ्य और विचित्र व्यवहार से खुद के अपमान का लगातार कारण बनते हैं।”

बता दें कि बुधवार (27 अप्रैल, 2022) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना स्थिति को लेकर देश के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की थी। बैठक के 19 सेकेंड के इस वीडियो क्लिप में पीएम मोदी के संबोधन के दौरान अरविंद केजरीवल अपनी कुर्सी पर पीछे हाथ रखकर अंगड़ाई लेते नजर आ रहे हैं।

अमित मालवीय के इस ट्वीट पर कुछ यूजर्स ने भी प्रतिक्रियाएं दी हैं। BJP IS POISON नाम के एक ट्विटर यूजर ने लिखा कि आप ऐसा तब करते हैं जब क्लास में टीचर किताब पढ़कर कुछ एक्सप्लेन करता है, जबकि उसे खुद कुछ समझ नहीं आ रहा होता। अजिंक्या व्यवहारे नाम के एक ट्विटर यूजर ने कहा, “बकवास लेक्चर सभी को बेआराम कर देता है। मोदी जी का भाषण सुनकर मुझे तो नींद आने लगती है। मैं उन्हें सुनने की बहुत कोशिश करता हूं लेकिन, 15 सेकेंड के बाद ही मुझे नींद आने लगती है।”



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जहांगीरपुरी में बुलडोजर: नमाज के बाद बोले जामा मस्जिद के शाही इमाम- परिंदों को चोट लगती है तो वो भी चोंच मारते हैं, यहां तो बसे बसाए घर उजाड़ दिए

जामा मस्जिद के शाही इमाम ने जहांगीरपुरी में अतिक्रमण हटाए जाने का विरोध किया है। जहांगीरपुरी में बुलडोजर एक्शन पर प्रतिक्रिया देते हुए शाही इमाम ने शुक्रवार को नमाज के बाद कहा कि परिंदों को चोट लगती है तो वो भी चोंच मारते हैं, यहांं तो लोगों के बसे-बसाए घरों पर बुलडोजर पर चला दिए।

शाही इमाम मौलाना सैयद अहमद बुखारी ने अलविदा की नमाज पर हजारों की संख्या में लोगों को खिताब करते हुए दिल्ली के जहांगीरपुरी और मध्य प्रदेश के खरगोन में हुई हिंसा की घटनाओं का जिक्र किया। उन्होंने बुलडोजर कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहा कि जहांगीरपुरी में जो बुलडोजर चला क्या वह सही था?

अहमद बुखारी ने कहा कि अगर सही जांच होती तो दूध का दूध पानी का पानी हो जाता, 70 सालों तक हम बेबस रहे। शाही इमाम ने कहा कि मुसलमान की हालत उस मोर जैसी है जो नाचता है और अपने पैरों का देखते ही रो पड़ता है। जहांगीरपुरी और खरगोन की घटनाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आज नफरत की दीवार खड़ी की जा रही है। उन्होंने कहा कि आज हिंदू-मुसलमान दोनों फ्रिकमंद हैं कि नफरत ऐसे ही बढ़ती रही तो उनका भविष्य क्या होगा।

जामा मस्जिद के शाही इमाम ने कहा, “हमारी तो गंगा-जमुनी तहजीब रही है और हम एक-दूसरे की मिठाइयां तकसीम करते हैं। लेकिन आज इन नफरतों से मुल्क बिखर न जाए, इसकी सबको चिंता है। मुट्ठी भर लोग इस देश का माहौल खराब करने की कोशिश कर रहे हैं।”

पीएम मोदी से करेंगे मुलाकात

अहमद बुखारी ने कहा कि देश का प्रधानमंत्री किसी एक का नहीं होता है, प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सभी के होते हैं, हिंदू-मुसलमान सभी के होते हैं। उन्होंने कहा कि वे पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात करने का समय लेंगे और उनसे मौजूदा हालात पर बात करेंगे। शाही इमाम ने कहा कि वे इस संबंध में प्रधानमंत्री को खत लिखेंगे क्योंकि हिंदू-मुसलमान को बचाना जरूरी है। बता दें कि शुक्रवार को देश भर की मस्जिदों में अलविदा की नमाज अदा की गई।



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जिसे हिंसा प्यारी, वो गिन रहा अपने अंतिम दिन- बोले RSS चीफ, बयान की तारीफ कर शिवसेना नेता ने कही यह बात

देश में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं को लेकर आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) चीफ मोहन भागवत ने कहा है कि हिंसा से किसी को लाभ नहीं होता है। जिसे यह चीज प्यारी होती है, वह अपने अंतिम दिन गिन रहा है। संघ प्रमुख के इस बयान की शिवसेना की तरफ से तारीफ की गई है। पार्टी के सीनियर नेता संजय राउत ने कहा कि इस तरह के विचार पर बहस होनी चाहिए।

भागवत का ताजा बयान अमरावती जिले के पास भानखेड़ा रोड पर एक कार्यक्रम के दौरान आया। वह कंवरराम धाम में संत कंवरराम के प्रपौत्र साईं राजलाल मोरदिया के ‘गद्दीनशीनी’ में बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे थे। आरएसएस प्रमुख ने इस बात जोर दिया कि हिंसा से किसी को कोई फायदा नहीं होता। उन्होंने सभी समुदायों को एकसाथ लाने और मानवता के संरक्षण की अपील की।

बकौल आरएसएस चीफ, ‘‘हिंसा से किसी का भला नहीं होता। जिस समाज को हिंसा प्रिय है वह अब अपने अंतिम दिन गिन रहा है। हमें हमेशा अहिंसक और शांतिप्रिय होना चाहिए। इसके लिए सभी समुदायों को एकसाथ लाना और मानवता की रक्षा करना आवश्यक है। हम सभी को इस काम को प्राथमिकता के आधार पर करने की जरूरत है।’’

समझा जा सकता है कि संघ प्रमुख की यह टिप्पणी भाजपा शासित मध्य प्रदेश और गुजरात सहित लगभग आधा दर्जन राज्यों में रामनवमी और हनुमान जन्मोत्सव समारोह के दौरान सांप्रदायिक झड़पों की पृष्ठभूमि में आई है।

वहीं, राउत से जब भागवत के बयान पर शुक्रवार को पत्रकारों ने सवाल किया तो उन्होंने जवाब दिया- अच्छी बात है…मैं उनका खास अभिनंदन करता हूं। उन्होंने ऐसे विचार को सामने रखा है, जिस पर पूरे देश में बहस होनी चाहिए।

बता दें कि रमजान के बीच देश के विभिन्न शहरों में रामनवमी और हनुमान जयंती के जुलूस के दौरान दो समुदायों के बीच हिंसक झड़पें हुई थीं, जिनमें कई लोग जख्मी हुए थे। इन घटनाओं में सबके अपने-अपने पक्ष और आरोप-प्रत्यारोप थे। हालांकि, कुछ जगहों पर इन घटनाओं के बाद सरकारी एक्शन के तहत कई जगह बुलडोजर चलाया गया था। इस कार्रवाई को लेकर काफी सियासत गर्मा गई थी और एक धड़े की ओर से कहा गया था कि इस एक्शन के जरिए एक समुदाय के लोगों को निशाना बनाया गया।



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कोयला संकट ने Indian Railways की पैसेंजर गाड़ियों के 650 फेरों पर लगाई लगाम, जानें- कब तक रहेंगी कैंसल

भीषण गर्मी और कोयले की किल्लत के चलते देश के कई हिस्सों में गहरा बिजली संकट पैदा हो गया है। दिल्ली, राजस्थान, महाराष्ट्र समेत देश के 13 राज्य बिजली संकट का सामना कर रहे हैं। आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, झारखंड, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान समेत कई राज्यों में भारी बिजली कटौती की जा रही है। ऐसे में बिजली घरों में कोयले की कमी को देखते हुए रेलवे ने बड़ा फैसला लिया है। भारतीय रेल ने पिछले कुछ हफ्तों में हर दिन कई मेल/एक्सप्रेस और यात्री ट्रेनों को कैंसिल किया है, ताकि बिजली संयंत्रों तक कोयला ले जानी वाली मालगाड़ियों को रास्ता दिया जा सके।

बिजली की मांग में बढ़ोतरी के कारण कोयले की आपूर्ति के लिए रेल मंत्रालय ने 24 मई तक यात्री ट्रेनों के लगभग 670 फेरों को कैंसिल करने की अधिसूचना जारी की है। इनमें से 500 से ज्यादा लंबी दूरी की मेल और एक्सप्रेस ट्रेन हैं। इसके साथ ही रेलवे ने कोयला ले जाने वाली मालगाड़ियों की संख्या भी बढ़ा दी है। रोजाना 400 से ज्यादा ऐसी ट्रेनों को चलाया जा रहा है, जिनमें से प्रत्येक में लगभग 3,500 टन कोयला है।

भारतीय रेलवे के कार्यकारी निदेशक गौरव कृष्ण बंसल ने कहा कि यह उपाय अस्थायी है और स्थिति सामान्य होते ही यात्री सेवाएं बहाल कर दी जाएंगी। रेलवे ने 28 अप्रैल से पैसेंजर गाड़ियों को अगले आदेश तक रद्द किया है।

भारत के कई हिस्सों में बिजली कटौती: सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी (सीईए) की डेली कोल स्टॉक रिपोर्ट के मुताबिक, 165 थर्मल पावर स्टेशनों में से 56 में 10 फीसदी या उससे कम कोयला बचा है जबकि 26 थर्मल पावर स्टेशनों के पास पांच फीसदी से भी कम स्टॉक बचा है। बेतहाशा बढ़ती गर्मी के बीच भारत के कई हिस्सों में ब्लैकआउट और बिजली कटौती ने जन-जीवन और उद्योगों को प्रभावित किया है।

कुछ उद्योग कोयले की कमी के कारण उत्पादन में कटौती कर रहे हैं। अप्रैल की शुरुआत से भारत के बिजली संयंत्रों में कोयले के भंडार में लगभग 17 प्रतिशत की गिरावट आई है जोकि आवश्यक स्टॉक का एक तिहाई है।

रोजाना 400 से ज्यादा मालगाड़ियां चला रहा रेलवे: रिकॉर्ड हीट वेव के चलते बिजली की मांग में तेजी आई है। भारत की लगभग 70 प्रतिशत बिजली कोयले से पैदा होती है। ज्यादा संख्या में यात्री ट्रेनों के चलने से भीड़भाड़ वाले रूट पर अक्सर शिपमेंट देरी से पहुंचते हैं। आंकड़ों के मुताबिक 2016-17 में रेलवे रोजाना कोयले की ढुलाई के लिए 269 मालगाड़ियां चला रहा था। साल 2021 में रोजाना ऐसी 347 मालगाड़ियां चलाई गई और गुरुवार (28 अप्रैल 2022) तक यह संख्या रोजाना 400 से 405 पहुंच गई।

दिल्ली में कोयला संकट के बारे में बताते हुए ऊर्जा मंत्री सत्येंद्र जैन ने कहा कि कई बिजली संयंत्रों के पास एक दिन से भी कम समय का कोयला बचा है, जबकि उनके पास कम से कम 21 दिनों का कोयला स्टॉक होना चाहिए। उन्होंने कहा कि इससे बिजली बंद हो सकती है और मेट्रो और सरकारी अस्पतालों जैसी सेवाओं में रुकावट आ सकती है।



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Thursday, April 28, 2022

केंद्रीय विद्यालय बनवाने में नरेंद्र मोदी सरकार आगे या मनमोहन सिंह? RTI से मिला ये जवाब

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के आठ सालों में 159 केंद्रीय विद्यालय (KV School) बनाए गए, जबकि पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के कार्यकाल के आठ सालों में 202 स्कूलों का निर्माण किया गया था। यह जानकारी इंडिया टुडे की तरफ से दायर सूचना के अधिकार (Right to Information- RTI) में सामने आई है।

आरटीआई में बताया गया कि 2014-15 से 2021-2022 के दौरान 159 स्कूलों का निर्माण किया गया। वहीं, 2004-05 से 2011-12 तक, जब मनमोहन सिंह की सरकार थी, तब 202 केंद्रीय विद्यालय शुरू किए गए। इसका मतलब है मौजूदा एनडीए सरकार में सालाना करीब 20 स्कूल बनाए गए जबकि यूपीए सरकार की बात करें तो आठ सालों में हर साल तकरीबन 25 केवी का निर्माण किया गया।

वर्तमान एनडीए सरकार में मध्य प्रदेश में 20, उत्तर प्रदेश में 17, राजस्थान में 14, कर्नाटक में 13, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में 10-10 स्कूल खोले गए। वहीं, यूपीए सरकार के शुरुआती 8 वर्षों के दौरान, ओडिशा को सबसे ज्यादा 24 केवी स्कूल मिले, जबकि मध्य प्रदेश में 20, बिहार में 16, यूपी में 12, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में 11-11 एवं पंजाब और तमिलनाडु में 10-10 स्कूल खोले गए। इन 8 वर्षों में, बिहार को मनमोहन सरकार के तहत 16 केवी मिले, लेकिन पीएम मोदी के शासन में केवल 4 केवी ही मिले।

बता दें कि देशभर में 1249 केवी हैं जिनमें तकरीबन 14,35,562 छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। केवी स्कूल रियायती गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करते हैं इसलिए ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों को केंद्रीय स्कूलों में पढ़ाई के लिए भेजना चाहते हैं, लेकिन इनकी संख्या में कमी को देखते हुए ही नए केवी स्कूल खोलने की तरफ सरकार ने काम किया। किस सरकार द्वारा कितने स्कूल खोले गए और पिछले 15 सालों में उन्हें कितना पैसा आवंटित किया गया है, यह जानने के लिए इंडिया टुडे ने केवी के पास आरटीआई दायर की थी। इस आरटीआई के जरिए ही यह आंकड़ा सामने आया है।

केंद्र सरकार ने केवी में एडमिशन के लिए कोटा किया खत्म
केंद्र सरकार ने केवी में एडमिशन के लिए कोटा खत्म कर दिया है। कोटा के माध्यम से संसद सदस्य केंद्रीय विद्यालयों (केवी) में प्रवेश के लिए नामों की सिफारिश कर सकते थे। इसके तहत, प्रत्येक सांसद प्रवेश के लिए 10 छात्रों के नाम सिफारिश कर सकता था। मार्च में, कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने लोकसभा में कहा था कि 10 का कोटा काफी कम है। उन्होंने सरकार से आग्रह कर कहा कि या तो इस कोटे को बढ़ाया जाए या फिर पूरी तरह से खत्म कर दिया जाए। इसके बाद सरकार ने कोटा रद्द कर दिया।



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Fuel Price Hike: राज्य सरकारों के लिए ईंधन पर टैक्स में कटौती करना क्यों और कैसे है आसान? समझें

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम तेजी के बाद केंद्र सरकार की ओर से 3 सालों में (नवंबर 2021) पहली बार एक्साइज ड्यूटी को घटाया गया था। केंद्र के इस फैसले के बाद कई राज्य सरकारों ने भी वैट को कम करके लोगों को राहत दी थी। लेकिन पिछले दिनों कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण तेल वितरण कंपनियों की तरफ से 16 दिनों में करीब 14 बार पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाए गए थे, जिसके बाद केंद्र की ओर से की गई कटौती का प्रभाव खत्म हो गया है।

दरअसल, केंद्र सरकार और राज्य सरकारें पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी और वैट लगाकर कर वसूलते हैं। पेट्रोल और डीजल पर लगने वाले टैक्स दोनों ही सरकारों की आय का मुख्य स्रोत होती है। भारतीय रिजर्व बैंक के 2020-21 के डाटा के अनुसार केंद्र सरकार की आय का लगभग 18 एक्साइज ड्यूटी से आता है जबकि राज्य सरकारों की 25 से 35 फ़ीसदी तक आय पेट्रोलियम और अल्कोहल पर लगने वाले टैक्स से होती है।

राज्यों की कुल राजस्व प्राप्तियों में से 25- 29 फीसदी हिस्सा केंद्रीय कर हस्तांतरण के रूप में आता है जबकि उसमें स्वयं के कर राजस्व का हिस्सा 45-50 फीसदी तक होता है।

यदि दिल्ली के हिसाब से बात करें, तो मौजूदा समय में केंद्र और राज्य के कर को मिला दे तो पेट्रोल पर 43 फीसदी और डीजल पर 37 फीसदी टैक्स वसूला जा रहा है। वहीं, क्रेडिट एजेंसी आईसीआरए ने बताया कि यदि केंद्र सरकार पेट्रोल और डीजल पर महामारी से पहले वाली एक्साइज ड्यूटी को फिर से लागू कर देती है तो सरकार को वित्त वर्ष 2202- 23 में 92 हजार करोड़ रुपए का नुकसान होगा।

पिछले साल नवंबर में केंद्र सरकार की ओर से पेट्रोल पर ₹5 और डीजल पर ₹10 एक्साइज ड्यूटी घटाने के बाद, 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने वैट को 1.8 -10 रुपए तक कम किया था। आरबीआई के स्टेट फाइनेंस रिपोर्ट 2021-22 में कहा गया कि यह कटौती देश के सभी राज्यों की जीडीपी का लगभग 0.8 फीसदी थी।

पेट्रोल डीजल पर एक्साइज ड्यूटी कम करने के बावजूद भी महामारी से पहले के मुकाबले पेट्रोल पर 8 रुपए जबकि डीजल पर 6 रुपए की एक्साइज ड्यूटी अधिक है।

प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल के मुताबिक, पिछले वित्त वर्ष में अप्रैल – दिसंबर 2021 के केंद्र सरकार को कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों पर 3.10 लाख करोड़ रुपए की आमदनी हुई थी, जिसमें से एक्साइज ड्यूटी का हिस्सा करीब 2.63 फीसदी है। इसी दौरान देश में सभी राज्य सरकारों ने वैट के जरिए करीब 1.89 लाख करोड़ रुपए की आमदनी हुई थी।

वित्त वर्ष 2020-21 में केंद्र सरकार को कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों पर कर से 4.19 करोड़ रुपए की आय हुई थी, जिसमें 3.73 लाख करोड़ रुपए की एक्साइज ड्यूटी और 10,676 करोड़ का सेस शामिल था। वहीं, इस दौरान राज्य सरकारों पेट्रोलियम उत्पादों और पेट्रोल-डीजल पर कर से 2.17 लाख करोड़ रुपए की आय हुई थी, जिसमें 2.03 लाख करोड़ रुपए का वैट शामिल है।

केंद्र सरकार के एक्साइज ड्यूटी कम करने के बाद भाजपा शासित 17 राज्यों ने वैट को कम किया था। इन राज्यों में गुजरात, उत्तर प्रदेश,बिहार, कर्नाटक, हरियाणा, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम शामिल थे। इसके अलावा एक्साइज ड्यूटी कम होने के एक हफ्ते बाद पंजाब और उड़ीसा राज्य की सरकारों ने भी वैट को कम कर लोगों को राहत दी थी।

दिल्ली सरकार की ओर से वैट को दिसंबर में कम किया गया था। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को देश के सभी मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल और झारखंड से वैट कम करने को कम कर लोगों को राहत देने की अपील की थी। पीएम मोदी ने कहा था, “वैश्विक संकट के इस समय में संघवाद की भावना का पालन करते हुए सभी राज्य एक टीम की तरह कार्य करें”

(लेखक – आंचल मैगज़ीन और करुणजीत सिंह)



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Fuel Price Hike: राज्य सरकारों के लिए ईंधन पर टैक्स में कटौती करना क्यों और कैसे है आसान? समझें

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम तेजी के बाद केंद्र सरकार की ओर से 3 सालों में (नवंबर 2021) पहली बार एक्साइज ड्यूटी को घटाया गया था। केंद्र के इस फैसले के बाद कई राज्य सरकारों ने भी वैट को कम करके लोगों को राहत दी थी। लेकिन पिछले दिनों कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण तेल वितरण कंपनियों की तरफ से 16 दिनों में करीब 14 बार पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाए गए थे, जिसके बाद केंद्र की ओर से की गई कटौती का प्रभाव खत्म हो गया है।

दरअसल, केंद्र सरकार और राज्य सरकारें पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी और वैट लगाकर कर वसूलते हैं। पेट्रोल और डीजल पर लगने वाले टैक्स दोनों ही सरकारों की आय का मुख्य स्रोत होती है। भारतीय रिजर्व बैंक के 2020-21 के डाटा के अनुसार केंद्र सरकार की आय का लगभग 18 एक्साइज ड्यूटी से आता है जबकि राज्य सरकारों की 25 से 35 फ़ीसदी तक आय पेट्रोलियम और अल्कोहल पर लगने वाले टैक्स से होती है।

राज्यों की कुल राजस्व प्राप्तियों में से 25- 29 फीसदी हिस्सा केंद्रीय कर हस्तांतरण के रूप में आता है जबकि उसमें स्वयं के कर राजस्व का हिस्सा 45-50 फीसदी तक होता है।

यदि दिल्ली के हिसाब से बात करें, तो मौजूदा समय में केंद्र और राज्य के कर को मिला दे तो पेट्रोल पर 43 फीसदी और डीजल पर 37 फीसदी टैक्स वसूला जा रहा है। वहीं, क्रेडिट एजेंसी आईसीआरए ने बताया कि यदि केंद्र सरकार पेट्रोल और डीजल पर महामारी से पहले वाली एक्साइज ड्यूटी को फिर से लागू कर देती है तो सरकार को वित्त वर्ष 2202- 23 में 92 हजार करोड़ रुपए का नुकसान होगा।

पिछले साल नवंबर में केंद्र सरकार की ओर से पेट्रोल पर ₹5 और डीजल पर ₹10 एक्साइज ड्यूटी घटाने के बाद, 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने वैट को 1.8 -10 रुपए तक कम किया था। आरबीआई के स्टेट फाइनेंस रिपोर्ट 2021-22 में कहा गया कि यह कटौती देश के सभी राज्यों की जीडीपी का लगभग 0.8 फीसदी थी।

पेट्रोल डीजल पर एक्साइज ड्यूटी कम करने के बावजूद भी महामारी से पहले के मुकाबले पेट्रोल पर 8 रुपए जबकि डीजल पर 6 रुपए की एक्साइज ड्यूटी अधिक है।

प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल के मुताबिक, पिछले वित्त वर्ष में अप्रैल – दिसंबर 2021 के केंद्र सरकार को कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों पर 3.10 लाख करोड़ रुपए की आमदनी हुई थी, जिसमें से एक्साइज ड्यूटी का हिस्सा करीब 2.63 फीसदी है। इसी दौरान देश में सभी राज्य सरकारों ने वैट के जरिए करीब 1.89 लाख करोड़ रुपए की आमदनी हुई थी।

वित्त वर्ष 2020-21 में केंद्र सरकार को कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों पर कर से 4.19 करोड़ रुपए की आय हुई थी, जिसमें 3.73 लाख करोड़ रुपए की एक्साइज ड्यूटी और 10,676 करोड़ का सेस शामिल था। वहीं, इस दौरान राज्य सरकारों पेट्रोलियम उत्पादों और पेट्रोल-डीजल पर कर से 2.17 लाख करोड़ रुपए की आय हुई थी, जिसमें 2.03 लाख करोड़ रुपए का वैट शामिल है।

केंद्र सरकार के एक्साइज ड्यूटी कम करने के बाद भाजपा शासित 17 राज्यों ने वैट को कम किया था। इन राज्यों में गुजरात, उत्तर प्रदेश,बिहार, कर्नाटक, हरियाणा, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम शामिल थे। इसके अलावा एक्साइज ड्यूटी कम होने के एक हफ्ते बाद पंजाब और उड़ीसा राज्य की सरकारों ने भी वैट को कम कर लोगों को राहत दी थी।

दिल्ली सरकार की ओर से वैट को दिसंबर में कम किया गया था। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को देश के सभी मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल और झारखंड से वैट कम करने को कम कर लोगों को राहत देने की अपील की थी। पीएम मोदी ने कहा था, “वैश्विक संकट के इस समय में संघवाद की भावना का पालन करते हुए सभी राज्य एक टीम की तरह कार्य करें”

(लेखक – आंचल मैगज़ीन और करुणजीत सिंह)



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COVID-19 Vaccine for Kids: 12 साल तक के बच्चों का टीका कितना सेफ…कब तक लगेगा? जानिए जरूरी बातें

राष्ट्रीय दवा नियामक (ड्रग रेग्युलेटर) डीसीजीआई (Drugs Controller General of India) ने छह से 12 साल की आयु वर्ग के लिए भारत बायोटेक (Bharat Biotech) की कोवैक्सिन (Covaxin) को और पांच से 12 वर्ष के आयु वर्ग के लिए बायोलॉजिकल ई (Biological E’s) के कॉर्बेवैक्स (Corbevax) को आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण (EUA) की मंजूरी दी है। ऐसे में 12 साल और उससे कम आयु के बच्चों के लिए कोविड -19 टीकाकरण चालू होने का रास्ता साफ माना जा रहा है। आइए, जानते हैं बच्चों के कोरोना टीकाकरण से जुड़े कुछ बुनियादी सवाल और उनके जवाब:

बच्चों के लिए अब क्यों दी गई मंजूरी?: हिंदुस्तान में चरणबद्ध तरीके (वैज्ञानिक और महामारी विज्ञान से जुड़े प्रमाणों के आधार पर) से वैक्सीन वैक्सीन दी जा रही हैं। पहले फेज में अधिक जोखिम वाले समूहों को प्राथमिकता पर रखा गया। इनमें हेल्थकेयर और फ्रंटलाइन वर्कर और बुजुर्ग लोग थे। आगे टीकाकरण अभियान का विस्तार हुआ तो आगे के चरणों में सभी वयस्क कवर किए गए। जैसे-जैसे वैज्ञानिक स्तर पर जानकारी हासिल होती गई और अधिक टीके उपलब्ध हुए, सरकार ने इस साल जनवरी में 15-18 आयु वर्ग के लिए और मार्च में 12-14 आयु वर्ग के लिए टीकाकरण की शुरुआत की थी। 12 साल तक के बच्चों के लिए टीका के इमरजेंसी यूज की मान्यता (ईयूए) वैक्सीन बनाने वालों की ओर से जमा किए गए ट्रायल्स के आंकड़ों के आधार पर आए हैं। मंगलवार के फैसले के साथ भारत इस आयु वर्ग के लिए टीकाकरण चालू करने से महज एक कदम दूर है।

इस आयु समूह के बच्चों को कब लगेगा टीका?: वैक्सीन पर नियामक संस्था की अनुमति और डेटा को सरकारी एक्सपर्ट्स की संस्था के समक्ष रखा जाएगा। इनमें एनटीएजीआई (National Technical Advisory Group on Immunisation) शामिल है, जो कि सरकार को टीकाकरण पर मार्गदर्शन मुहैया कराता है। इस दौरान वैक्सीन के वैज्ञानिक दस्तावेज का टेक्निकल रिव्यू भी किया जाता है। आगे एनईजीवीएसी (National Expert Group on Vaccine Administration for COVID-19) केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के समक्ष अंतिम सिफारिश रखेगा। माना जा रहा है कि इस पर फाइनल फैसला कुछ दिनों में आ सकता है।

छोटे बच्चों के लिए वैक्सीन आना क्यों है अहम?: कोविड -19 का टीका गंभीर बीमारी, संक्रमण से मौत और अस्पताल में भर्ती होने से बचाता है। ऐसे में जैसे ही स्कूल खुलने के बाद बच्चे वहां लौटे हैं, टीकाकरण उनकी सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। अमेरिका में, सीडीसी (Centers for Disease Control and Prevention) सिफारिश करता है कि पांच साल और उससे अधिक उम्र के सभी लोगों को कोविड -19 के खिलाफ टीका लगाया जाना चाहिए। अमेरिका में इस आयु वर्ग के लिए फाइजर/बायोएनटेक की एमआरएनए वैक्सीन का इस्तेमाल किया जा रहा है।

सीडीसी ने पाया कि पांच से 12 साल की उम्र के बच्चे एमआईएस-सी (Multisystem Inflammatory Syndrome in Children) से “सबसे अधिक बार” प्रभावित होते हैं। यह कोविड -19 से जुड़ी एक स्थिति है और शरीर के कई हिस्सों की सूजन से चिह्नित हो जाती है। बकौल सीडीसी, “हम डेटा जुटा रहे हैं कि छोटे बच्चों में एमआईएस-सी के खिलाफ सीओवीआईडी ​​​​-19 टीकाकरण कितनी अच्छी तरह काम करता है। जैसे-जैसे 12 साल से कम उम्र के अधिक बच्चों को टीका लगाया जाएगा, सीडीसी उन आंकड़ों का विश्लेषण और साझा करने में सक्षम होगा।”

क्या वैक्सीन्स चुनने का मिलेगा विकल्प?: भारत में इस आयु वर्ग के लिए कौन सा टीका होगा, इस बात पर आखिरी फैसला सरकार करेगी। मसलन केंद्र सिर्फ 12 से 14 साल के आयु वर्ग के लोगों को Corbevax और 15-18 आयु वर्ग के लोगों को केवल Covaxin लेने की अनुमति देती है। वहीं, Zydus Cadila DNA वैक्सीन (जिसे 12 साल और उससे अधिक आयु के बच्चों के लिए अप्रूव किया गया है) अभी तक वैक्सिनेशन कैंपेन में इस्तेमाल नहीं की गई है।

कितने प्रभावी और सुरक्षित हैं ये टीका?: भारत बायोटेक (जो दो से 18 साल की आयु वर्ग में डेटा मुहैया कराने के लिए दुनिया के पहले कोविड-19 वैक्सीन ट्रायल में से एक का संचालन कर रहा है) ने मंगलवार को कहा कि इन बच्चों में एंटीबॉडी को बेअसर करना वयस्कों की तुलना में 1.7 गुना अधिक था। कंपनी के मुताबिक, “कोवैक्सिन दो खुराक के साथ बच्चों में मजबूत प्रतिरक्षा पैदा करती है, जबकि छह महीने बाद वह इम्यून होने के संकेत देती है। इस मसले से जुड़ा डेटा सीडीएससीओ (Central Drugs Standard Control Organisation) सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी को पेश किया गया था। आगामी हफ्तों में इसे छापा जाएगा।”

बता दें कि पिछले सितंबर में Biological E को पांच से 18 साल के एज ग्रुप के बच्चों और किशोरों में कॉर्बेवैक्स के साथ फेज 2/3 ट्रायल करने की मंजूरी मिली। एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) के बाद कंपनी ने अक्टूबर 2021 (जो चल रहा है) में स्टडी शुरू की और सुरक्षा और इम्यूनोजेनेसिटी नतीजों का मूल्यांकन किया। कंपनी ने कहा कि डेटा दर्शाता है कि टीका सुरक्षित और इम्यूनोजेनिक ( Immunogenic: यानी इम्युनिटी पैदा करता है) है।

वैक्सीन से जुड़ी ये बातें भी जान लें: बच्चों को टीका कब और कहां मिलेगा, छह से 12 साल के बच्चों के लिए कोरोना वैक्सीन के लिए पंजीकरण कैसे करना होगा, क्या बच्चों को टीका के लिए पंजीकरण करना होगा, क्या 12-14 और 15-17 साल के बच्चों को टीका लगवाने के लिए पैसे देने होंगे और यह कितने दिनों में उन्हें लगवा दिया जाएगा? फिलहाल इन सवालों के स्पष्ट और आधिकारिक जवाब सामने नहीं आए हैं। पर माना जा रहा है कि बूस्टर डोज लगने के साथ ही जल्द बच्चों का टीकाकरण भी चालू होगा। माना जा रहा है कि बच्चों को भी सामान्य कोरोना टीका केंद्रों पर जाकर वैक्सीन लगवाई जा सकेगी और उसके लिए उन्हें ऑनलाइन और ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन कराना पड़ेगा। यह भी कहा जा रहा है कि टीका निःशुल्क होगा। पर इस पर फिलहाल कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है। जल्द ही सरकार की ओर से चीजें स्पष्ट की जा सकती हैं।

24 घंटे में 3,303 नए केस, 39 की मौत: भारत में एक दिन में कोविड-19 के 3,303 नए मामले सामने आए। इन ताजा मामलों के बाद कोरोना से अब तक संक्रमित हो चुके लोगों की संख्या बढ़कर 4,30,68,799 हो गई, जबकि इलाजरत मरीजों की संख्या बढ़कर 16,980 पर पहुंच गई। देश में 46 दिन बाद तीन हजार से अधिक दैनिक मामले सामने आए हैं।

गुरुवार सुबह आठ बजे तक के केंद्र के डेटा के मुताबिक, देश में संक्रमण से 39 और लोगों की मौत के बाद मृतक संख्या बढ़कर 5,23,693 हो गई है। वहीं, देश में कोविड-19 के इलाजरत मरीजों की संख्या बढ़कर 16,980 हो गई है, जो कुल मामलों का 0.04 प्रतिशत है। 24 घंटे में उपचाराधीन मरीजों की संख्या में 701 की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। वहीं, मरीजों के ठीक होने की राष्ट्रीय दर 98.74 प्रतिशत है।

‘भारत में कोरोना के बहुत कम रिकॉम्बिनेंट स्वरूप’: इस बीच, भारतीय सार्स-सीओवी-2 जीनोमिक्स संघ (इनसाकॉग) ने जीनोम अनुक्रमण के विश्लेषण के आधार पर कहा है कि देश में कोरोना के बहुत कम रिकॉम्बिनेंट (पुन: संयोजित) स्वरूप पाए गए हैं। इनमें से किसी में न तो स्थानीय या अन्य स्तर पर संक्रमण में वृद्धि देखी गई और न ही इनसे गंभीर संक्रमण या अस्पताल में भर्ती होने का खतरा है।

इनसाकॉग ने बुधवार को जारी 11 अप्रैल के अपने साप्ताहिक बुलेटिन में कहा था कि संदिग्ध पुन: संयोजन (रिकॉम्बिनेंट) तथा संभावित सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रासंगिकता की घटनाओं पर करीबी नजर रखी जा रही है। इनसाकॉग ने इसके अलावा वैश्विक परिदृश्य के संदर्भ में कहा कि दो रिकॉम्बिनेंट स्वरूप – एक्सडी और एक्सई पर दुनियाभर में करीब से नजर रखी जा रही है।



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बैंक ऑफ बड़ौदा ने इन ग्राहकों के लिए शुरू किया खास फीचर, घर बैठे स्‍वास्‍थ्‍य सेवा, जमा व इन सुविधाओं का ले सकेंगे लाभ

बैंक ऑफ बड़ौदा ने अपने ग्राहकों की सुविधा के लिए खास फीचर की शुरुआत की है। बैंक की ओर से बॉब गोल्‍ड फीचर लॉन्च विशेष रूप से वरिष्ठों और बुजुर्गों के लिए किया गया है। इसे बॉब वर्ल्ड मोबाइल बैंकिंग प्लेटफॉर्म पर डिजाइन किया गया है, जो वरिष्‍ठ नागरिकों को दी जाने वाली एक नई सुविधा है। यह एक डिजिटल बैंकिंग प्‍लेटफॉर्म है, जिसके तहत सीनियर सिटीजन को एक सरल, सहज और सुरक्षित मोबाइल बैंकिंग सुविधा मिलती है।

बैंक ऑफ बड़ौदा के प्रबंध निदेशक और सीईओ संजीव चड्ढा का कहना है कि वरिष्ठ ग्राहकों की अनूठी जरूरतें हैं और इस कारण यह फीचर पेश करना जरूरी था। उन्‍होंने बताया कि बॉब वर्ल्ड गोल्ड ग्राहकों की जरूरतों को पूरा करता है। इसके तहत ग्राहकों के लिए एक सरल, स्मार्ट, अधिक व्यक्तिगत और वरिष्ठ-अनुकूल बैंकिंग अनुभव देता है। साथ ही बैंकिंग के कई सेवाओं को डिजिटल तरीके से घर बैठे एक्‍सेस करने की अनुमति देता है।

बॉब वर्ल्ड गोल्ड में क्‍या मिलेंगी सुविधाएं
बॉब वर्ल्ड गोल्ड में आसान नेविगेशन, बड़े फोंट, अधिक स्‍पेस और कई सुविधाएं मेन्‍यू बार में ही दी गई है। इसके साथ ही रेडी-टू-असिस्ट, बोलकर सर्च करना भी दिया गया है। जबकि बॉब वर्ल्ड 250 से अधिक सेवाएं प्रदान करता है, बॉब वर्ल्ड गोल्ड वरिष्ठ नागरिकों के लिए आवश्यक, अक्सर उपयोग की जाने वाली सेवाओं और पसंदीदा लेनदेन को होम स्‍क्रीन पर रखता है, ताकि इसे सरलता तक पाया जा सके। होम पर जमा नवीनीकरण, बचत खातों की तुलना, सेवानिवृत्ति और उत्तराधिकार योजना सेवाएं, स्वास्थ्य सेवाएं / फार्मेसी आदि शामिल हैं।

बॉब वर्ल्ड गोल्ड की विशेषताएं
सरल और आसान यूजर इंटरफेस:
इसके तहत डैसबोर्ड पर ही यूजर्स को सिंपल टू नेविगेशन स्‍क्रीन, सरल वॉयस सर्च दिया जाता है। ताकि लोगों को आसानी से लाभ मिल सके।
अनुकूलन: बॉब वर्ल्ड गोल्ड को प्रासंगिक और पसंदीदा मेनू विकल्पों के साथ वरिष्ठ नागरिक ग्राहकों की प्राथमिकताओं को समझने के लिए अनुकूलित किया गया है।
संशोधित सेवाएं: बॉब वर्ल्ड गोल्ड के तहत वरिष्ठ नागरिकों (60 वर्ष और उससे अधिक) कुछ सेवाओं में संशोधन किया गया है, इसके तहत और टेक्स्ट, टूलटिप्स और नेविगेशन में सहायता के लिए बड़े आइकन और बड़े फॉन्‍ट, बेहतर-विपरीत रंगों के साथ एक नया संशोधित देता है।

क्‍या होगा फायदा
इसके तहत सीनियर सिटीजन ग्राहकों को दूर भटकने की जरुरत नहीं होगी। घर बैठे ही आप पैसे जमा करने से लेकर, बैंक डिटेल, बैलेंस की जानकारी, योजनाओं के बारे में और अन्‍य डिजिटल सुविधाओं के बारे में जान सकेंगे।



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Tuesday, April 26, 2022

Cannes Film Festival 2022: Deepika Padukone, Rebecca Hall announced as jury; Vincent Lindon to lead

A year after starring in the Cannes Film Festival Palme d’Or winner Titane, French actor Vincent Lindon will preside over the jury deciding the top prize at this year’s festival.

The Cannes Film Festival announced Tuesday that Lindon will be jury president at next month’s festival in the south of France. Lindon won best actor at the 2015 Cannes Film Festival for his performance in The Measure of a Man and received raves at the 2021 edition for his performance in Julia Ducournau’s body horror thriller Palme-winning Titane.

The other jury members are: Rebecca Hall, the British actor and filmmaker; India star Deepika Padukone; Swedish actor Noomi Rapace; Italian actor-director Jasmine Trinca; the Oscar-winning Iranian filmmaker Asghar Farhadi; French director Ladj Ly; American filmmaker Jeff Nichols; and Norwegian director Joachim Trier, whose The Worst Person in the World was also a prize winner at last year’s Cannes.

The 75th Cannes Film Festival begins 17 May and culminates with presentation of the Palme d’Or on 28 May.

(With inputs from The Associated Press)



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Twenty years of Arjun Rampal: A once promising actor now struggling to reinvent himself

In a scene from London Files, Detective Om Singh, played by Arjun Rampal, walks through the corridor of the local police department. Colleagues and deputies wish him good morning, but he hides his eyes, reluctant but also disinterested. It is almost like Rampal is walking through his filmography, a glaring array of interventions that though promising at various turns, has disappointed in its entirety.

In London Files, Rampal plays a typically tortured cop, who vapes and broods in equal measure. An otherwise serviceable mystery, it is one of those Rampal performances that makes you wonder whatever happened to all that promise of a decade-and-a-half ago, when Rampal, supported by his chiselled face and deep baritone, felt like the next step in the evolution of the mainstream hero. It has been anything but.

Not too long ago, Rampal was centre-stage in ZEE5’s intriguing but ultimately underwhelming series The Final Call. Cast as a pilot, the actor mooned and exhibited about as emotion as a cockpit allows movement. It is not like Rampal has seen exceptional highs or started out with a bang.

A series of poor first-impressions in trying to latch onto the heartthrob type in Bollywood, Rampal’s early films are barely memorable. It us not a good sign when your Wikipedia page says “He received acclaim for improving his emotional acting” as a way to salvage the early part of your career. But there was clearly a mysticism about Rampal, a tonal departure from the sweet-sounding heroes of the day. Rampal instead looked stiffer, his lack of acting nous serving as an antidote to the blaring '90s Bollywood heroes had inflicted on its audience.  

Rampal’s highest point in this slowest of slow starts to an unlikely career was the remake of Don (2006). The actor’s rugged, masculine exterior served as the perfect backdrop for a role that required to both deceive and lure. In Om Shanti Om (2007), Rampal played an authoritarian whose impressive exterior covered for a circus of brutal prejudices on the inside.

But the actor’s clinching, maybe his most out-of-body role was as the ageing, brooding guitarist of a defunct rock band in Rock On!! (2008). Think of it and Rampal has always been the guileless rockstar in a sea of affable beta men that ruled Bollywood by being a very obvious kind of romantics. Understandably, Rampal flourished where he was either the villain or simply, against the ropes of life, desexualised by its implications. Everywhere else, where Rampal is both the subject and object, he has flunked the first sight of a test.

At its height, Rock On!! should have been the definitive moment in the actor’s career. But now that you look back, none of the actors from the film bar Farhan Akhtar truly found solid ground later (coincidently, Purab Kohli is a co-star in London Files).

Perhaps one of the reasons could be that in an industry that reinvents or is forced to reconsider its tropes every other decade, Rampal has unfortunately stuck with the good-looking brooder type that lands him his next promising film/series that usually turns out to be anything but.

Rampal obviously cannot pull off the kind of range actors of today like Varun Dhawan and Ayushmann Khurrana have shown. He clearly cannot shoulder entire stories by himself because it requires the kind of screen presence and chameleon-like qualities that Rampal has never really exhibited. 

Maybe Rampal has simply been hard-done by the direction our cinema has taken in general. Small-town tales crowded by character actors who seamlessly pick up accents and eccentricities of the hinterland are in vogue, whereas elite, metrosexual men who speak perfect English and run handsomely down the street, their wavy locks sensualising even the dullest moments of grief, are simply not in demand.

It is kind of absurd that Rampal has somewhat outlasted contemporaries like Fardeen Khan and Tusshar Kapoor, and is competing with the once-excellent Vivek Oberoi. Not that the bar in these cases was high, but it kind of tells you that not an exceptional lot had to be done to ensure longevity. At least others like Hrithik Roshan, John Abraham, and the perpetually struggling Abhishek Bachchan have tried to reinvent themselves. Rampal, on the other hand, seems to have done the bare minimum in terms of rewriting himself beyond the metrics of his desirability.

London Files, though intriguing as a concept, is for some reason, set in a foreign country. As if to accommodate the sophisticated vocabulary of actors like Kohli and Rampal, rather than to set it in a place where the environment plays a role more significant than being the backdrop for a couple of handsome, incredibly lean fathers in distress.

At several points in his two-decade long career, the argument has probably been made that under the steely, almost improbably handsome Arjun Rampal, there is an actor waiting to be drawn out by the right script and story. Every project he announces next sounds like the eventual exhibition of the talent that Arjun Rampal has always seemed to carry beneath a breathtakingly likeable external configuration. Only to be anything but.

It is not like Rampal disappeared for years, and then rejuvenated. He has been around, consistently performing but barely registering anything that confirms the appraisal of his talent that perhaps peaked too soon. There are no rewards for longevity in this industry, and you have to wonder if anyone will get anything out of a promising career, that simply has not hit the peaks it once promised to.  

London Files is streaming on Voot Select.

Manik Sharma writes on art and culture, cinema, books, and everything in between.

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उद्धव इमाम हो चुके हैं- बोले BJP नेता तो भड़के कांग्रेस लीडर, कहा- फडणवीस CM थे तो अजान बंद हो गई थी?

मस्जिदों में अजान और मंदिरों में हनुमान चालीसा का पाठ को लेकर राजनीतिक विवाद कम होने का नाम नहीं ले रहा है। सड़क से लेकर सियासी दलों के दफ्तरों तक में यह मुद्दा गरमाया हुआ है। टेलीविजन चैनलों पर इसको लेकर जोरदार बहसबाजी जारी है। न्यूज-18 पर एंकर अमीश देवगन के साथ डिबेट में कांग्रेस के प्रवक्ता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने पूछा कि जब फडणवीस सीएम थे तो क्या अजान बंद हो गई थी? भाजपा की जहां-जहां सरकार है क्या वहां अजान बंद हो गई है। क्या वहां अजान नहीं हो रही है। क्या वे मुसलमान हो गए, क्या वे मौलाना हो गए, क्या वे इमाम हो गए?

इस पर एंकर अमीश देवगन ने कहा कि पहले यह बताइए कि देश में ऐसा कौन सा राज्य, जहां पर हनुमान चालीसा, सुंदर कांड, गीता पढ़ने पर देशद्रोह लगने का कानून हो। भाजपा छोड़िए, दूसरे दलों की सरकार वाले राज्य बताइए जहां ऐसा कानून हो। तमिलनाडु से कश्मीर तक घूम लीजिए। कोई ऐसा राज्य बताइए जहां यह कानून हो।

भाजपा प्रवक्ता मोहित कम्बोज ने कहा कि कांग्रेस के प्रवक्ता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने कहा है कि मंदिर में जाने से पहले पुजारी से परमीशन लेनी पड़ती है। मुझे तो ऐसा कोई मंदिर नहीं मालूम जहां पंडित से पूछना पड़ता हो कि पंडित जी दर्शन करने आएं कि नहीं आएं। मुझे तो कोई मंदिर मालूम नहीं देशभर में यह तो आचार्य जी को ही मालूम होगा। अभी आपने पंडित जी से उद्धव ठाकरे जी की तुलना की। उसको समझिए।

देखिए 2019 के बाद जब उद्धव ठाकरे सेक्युलर हो गए अपनी आइडियोलॉजी छोड़कर अब वे पंडित नहीं रहे, अब वे इमाम हो चुके हैं, इसके लिए अब वे हनुमान चालीसा के ऊपर देशद्रोह लगवाते हैं। अगर वे पंडित होते तो यह सब नहीं करते। तब वे देशद्रोह नहीं लगवाते। अब वे पंडित नहीं रहे।

इस पर कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम जोरदार ठहाका लगाकर बोले कि यह तो मैं पहले से ही कह रहा हूं कि अभी भाजपा वाले आरोप लगाएंगे कि उद्धव ठाकरे अब नमाज पढ़ते हैं।

उधर, निर्दलीय सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति रवि राणा 29 अप्रैल को मुंबई की एक सत्र अदालत द्वारा उनकी जमानत अर्जी पर सुनवाई किए जाने तक जेल में रहेंगे। अदालत ने मंगलवार को मुंबई पुलिस से जेल में बंद दंपति की जमानत याचिका पर 29 अप्रैल को जवाब दाखिल करने को कहा।

राणा दंपति ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बांद्रा स्थित निजी आवास ‘मातोश्री’ के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ करने का आह्वान किया था। इसके बाद मुंबई पुलिस ने उनके खिलाफ राजद्रोह और समुदायों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की थी। जमानत की मांग करते हुए दंपति ने सोमवार को अदालत का रुख किया था।



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महबूबा मुफ्ती क्या थी…बीजेपी प्रवक्ता ने जब MVA गठबंधन के हिंदुत्व पर उठाया सवाल तो NCP नेता ने दिया जवाब

“हम घंटाधारी हिंदुत्व नहीं, गदाधारी हिंदुत्व का पालन करते हैं। ये नकली हिंदुत्ववादी हैं।” महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के इस बयान पर भारतीय जनता पार्टी ने जवाब दिया है। बीजेपी ने कहा कि आज शिवसेना उनके साथ है जो केरल, बंगाल और असम में मुस्लिम लीग के साथ खड़े हैं। इस पर जम्मू-कश्मीर में पीडीपी-बीजेपी गठबंधन की याद दिलाते हुए एनसीपी प्रवक्ता ने सवाल किया- तो महबूबा मुफ्ती क्या थीं।

टीवी चैनल आज तक की डिबेट में हिंदुत्व के मुद्दे पर बोलते हुए बीजेपी प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा, “हिंदुत्व वो था जो 6 दिसंबर, 1992 में बाला ठाकरे ने कहा था कि मेरे शिवसैनिकों पर अगर ये आरोप है कि उन्होंने बाबरी मस्जिद ढहाई, तो मुझे गर्व है। गदा और शक्ति किसके पास थी वो दिखता है। अब अगर सीएम (उद्धव ठाकरे) कहते हैं कि कोई दादागिरी दिखाएगा तो हम बता देंगे। ये दादगिरी है या मजबूरी? ये राजनीतिक दृश्य सभी को दिखाई दे रहा है।”

उन्होंने आगे कहा, “जब मनोहर जोशी भाजपा-शिवसेना गठबंध सरकार में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे, तब उनसे पूछा गया कि आप पर आरोप है कि आप बाला ठाकरे जी के रिमोट से चलते हैं। इस पर जोशी ने सहमति जताई थी। आज उद्धव ठाकरे जी की सरकार दो-दो रिमोट (एनसीपी और कांग्रेस) से चलती है और दो-दो रिमोट से टीवी चलाएंगे तो दिखता है कि क्या होगा।”

बीजेपी प्रवक्ता ने कहा, “रिमोट की फितरत और हिंदुत्व के साथ हुई शरारत देखिए। एक तरफ वो हिंदुत्व है जिसकी हम बात करते हैं और दूसरी तरफ आज शिवसेना का हिंदुत्व कौन हैं। ये उनके साथ हैं जो केरल में मुस्लिम लीग के साथ हैं। ये उस कांग्रेस के साथ हैं जो बंगाल में पीरजादा अब्बास सिद्दीकी फुरफुराशरीफ की गद्दी नशीं के सजदे में। ये उस मुस्लिम लीग के साथ हैं जो कि असम में बदरुद्दीन अजमल के साथ है।”

सुधांशु त्रिवेदी ने शिवसेना पर हमला करते हुए कहा, “जो ऐसे लोगों के साथ आकर खड़े हो गए तो फिर क्या हिंदुत्व, क्या राम, क्या हनुमान। उनकी प्रतिज्ञा-निष्ठा और कितनी इबादत और कितनी सियासत है वो स्पष्ट हो जाता है।” इस बीच, एनसीपी प्रवक्ता बृजमोहन श्रीवास्तव ने जम्मू कश्मीर में पीडीपी-बीजेपी गठबंधन की याद दिलाते हुए कहा- तो फिर महबूबा मुफ्ती क्या थीं।



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जब बीजेपी-शिवसेना की सरकार थी तब तो इनके मुंह में लड्डू था- हनुमान चालीसा विवाद पर बोले ओवैसी

देश में चल रहे अजान बनाम हनुमान चालीसा विवाद पर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी राय रखी है। उन्होंने मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाए जाने को लेकर उठ रही मांग को एक साजिश करार दिया। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि इन मुद्दों को उठाकर भारतीय जनता पार्टी राजनीति कर रही है।

टीवी चैनल आज तक के साथ एक इंटरव्यू में एआईएमआईएम प्रमुख ने कहा कि जब महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना की गठबंधन की सरकार थी तब इन्हें लाउडस्पीकर याद नहीं आया। उस वक्त इनके मुंह में लड्डू और गुलाब जामुन था इसलिए खामोश बैठे थे। अब रमजान के पाक महीने में सुकून से हमें रमजान मनाने नहीं देना चाहते। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यह दो भाईयों का भी झगड़ा है, इसलिए इन सब चीजों को महाराष्ट्र में उठाया जा रहा है।

मुसलमानों के खिलाफ तैयार किया जा रहा माहौल- ओवौसी
ओवैसी ने आरोप लगाया कि इस मसले को उठाकर महाराष्ट्र में अमन को बर्बाद करने की कोशिश की जा रही है। और कुछ गड़बड़ हो इसलिए इसे उठाया जा रहा है। वहीं, एंकर ने कहा कि देश की अदालतों का मानना है कि अजान इस्लाम के लिए जरूरी है पर लाउडस्पीकर नहीं तो आपको नहीं लगता इस पर पहल होनी चाहिए।

इस पर ओवैसी ने जवाब देते हुए कहा, “कौन सा सुप्रीम कोर्ट के हर जजमेंट को लागू किया जा रहा है। लाउडस्पीकर सिर्फ मस्जिद पर ही थोड़े लगता है दूसरे मजहब के त्यौहारों में भी उसका इस्तेमाल किया जाता है। मुल्क में मुसलमानों के खिलाफ नफरत पैदा की जा रही है और ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि हिंदू भाईयो-बहनों को मुसलमानों से खतरा है। अगर इस तरह की राजनीति बीजेपी और संघ कर रहा है तो लोगों को जिम्मेदार नागरिक बनकर ये बात समझनी पड़ेगी।”

ओवैसी का आरोप- सरकार उठाती है ये मसले
मंदिर और मस्जिद दोनों जगह से लाउडस्पीकर हटाए जाने की अपील करने के सवाल पर ओवैसी ने कहा कि वो ऐसा नहीं करेंगे। उन्होंने कहा, “मुझे ये शिकायत है कि रमजान आते ही तमाम कोंट्रोवर्शियल चीजों को उठाया जाता है और उसके बाद वो मुद्दे खत्म हो जाते हैं। आखिर क्या पैगाम देना चाहते हैं। रमजान हमारे लिए सब्र का महीना है उसमें भी आप इन मसलों को उठा रहे हैं। सरकार ये मसले उठाती है।”

बुलडोजर पर भी बोले ओवैसी
इसके बाद ओवैसी ने मध्य प्रदेश, गुजरात और दिल्ली में दुकानों और घरों पर बुलडोजर का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला देते हुए कहा कि घरों दुकानों को तोड़ते समय वो आदेश क्यों याद नहीं आया, जिसमें कहा गया है कि ऐसी कार्रवाई से पहले नोटिस देना चाहिए।

बता दें कि महाराष्ट्र में हनुमान चालीसा बनाम अजान का मुद्दा गर्माया हुआ है। राज ठाकरे ने कहा है कि महाराष्ट्र की सभी मस्जिदों से तीन मई तक लाउडस्पीकर हट जाने चाहिए, वरना मस्जिदों के आगे हनुमान चालीसा बजेगी। वहीं, मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के घर के बाहर हनुमान चालीसा पढ़ने की जिद करने वाली अमरावती से निर्दलीय सांसद नवनीत राणा की गिरफ्तारी के बाद राज्य की सियासत और गरमा गई है।



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पुरानी शराब और पुराने दोस्त अभी भी सबसे अच्छे हैं- PK से मिलकर बोले सिद्धू, यूजर्स कसने लगे तंज

एक तरफ चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कांग्रेस में शामिल होने से इन्कार कर दिया वहीं दूसरी तरफ पंजाब कांग्रेस के चीफ रह चुके नवजोत सिंह सिद्धू ने पीके के साथ अपनी एक तस्वीर पोस्ट कर लिखा कि पीके से शानदार मुलाकात हुई। पुरानी शराब, पुराना सोना और पुराने दोस्त हमेशा सबसे अच्छे होते हैं। हालांकि सोशल मीडिया पर यूजर्स को शैरी का ये रवैया नहीं भाया। उन पर जमकर तंज कसे गए।

प्रशांत किशोर ने कांग्रेस में शामिल होने के पार्टी नेतृत्व के प्रस्ताव को मंगलवार को ठुकरा दिया। उन्होंने कहा कि देश की सबसे पुरानी पार्टी में घर कर गई समस्याओं को दूर करने के लिए उनसे ज्यादा जरूरी यह है कि कांग्रेस में नेतृत्व और सामूहिक इच्छाशक्ति हो। सोनिया गांधी ने किशोर को कांग्रेस के विशेषाधिकार प्राप्त कार्य समूह-2024 का हिस्सा बनकर पार्टी में शामिल होने की पेशकश की थी।

कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट किया कि प्रशांत किशोर की प्रस्तुति और उनके साथ चर्चा के बाद कांग्रेस अध्यक्ष ने विशेषाधिकार प्राप्त कार्य समूह-2024 का गठन किया और किशोर को निर्धारित जिम्मेदारी के साथ इस समूह का हिस्सा बनकर पार्टी में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने इनकार कर दिया। हम उनके प्रयासों और पार्टी को दिए गए सुझावों की सराहना करते हैं।

सोशल मीडिया पर स्वामी ने लिखा कि ओह अब समझ में आया कि हुआ क्या है? यह तो अच्छा हुआ वो शामिल नहीं हुआ नहीं तो और डुबा देता पंजाब की तरह। तनुज कुमार ने लिखा कि लगता है ट्वीट शेड्यूल करके रखा था। डिलीट करना भूल गए और अब लाइव हो गया। दीपक ने तंज कसा कि कांग्रेस की लुटिया डुबाने में कोई कसर नही छोड़नी।

एक ने लिखा कि ऐसी क्या दुश्मनी है पाजी कॉग्रेस से रिश्ता शुरू हुआ नहीं की तोड़ दिया। विभू शर्मा ने लिखा कि सिद्धू के चेहरे की लाली बता रही है कि पंजाब में कांग्रेस हो गयी खाली, तो बस इसी बात पर ठोको ताली, ठोको ताली। एक ने कहा कि सिद्धू साब इसे पूछो 17 में इतने बड़े वादे क्यों करके गया जो पूरे नहीं हुए।

रमन जंगराल ने लिखा कि एक समझौता करना था और वह समझौता नहीं हुआ पर उसके बावजूद प्रशांत किशोर अपने क्लाइंट को बदनाम करने की कोशिश कर रहा है। वह क्लाइंट कांग्रेस है। आप जिस पार्टी में हो उसी पार्टी की बुराई करने वाले के साथ दोस्ती भरा संदेश दे रहे हो। मैं कभी आप के खिलाफ नहीं गया पर आज आपकी खिलाफत करूंगा।



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Monday, April 25, 2022

हथियार निर्यात में भी भारत का बढ़ रहा दबदबा, टॉप-25 देशों में शामिल, सबसे ज्यादा म्यांमार ने खरीदा

हथियारों को निर्यात करने को लेकर भारत अबतक पीछे नजर आता था लेकिन 2017 से 2021 के दौरान इस छवि में बड़ा बदलाव देखने को मिला है। बता दें कि भारत से जो देश हथियार निर्यात कर रहे हैं उनमें म्यांमार, श्रीलंका और मॉरिशस टॉप 3 देशों में से एक हैं। वहीं भारत से हथियारों का आधा निर्यात म्यांमार में जाता है।

चीन (36%) और रूस (27%) के बाद म्यांमार भारत को तीसरे सबसे बड़े हथियार आपूर्तिकर्ता के रूप में जगह देता है। जो इसके आयात का 17% हिस्सा है। वहीं हथियारों के खर्च और निर्यात पर स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की नई वैश्विक रिपोर्ट 2021 देखें तो भारत हथियार निर्यात के मामले में दुनियाभर में 24 वें स्थान पर है।

2017-21 के आधे दशक के दौरान श्रीलंका और आर्मेनिया ने भारत के हथियारों के निर्यात का 25 फीसदी और 11 फीसदी हिस्सा खरीदा है। 2012-16 से 2017-21 के बीच वैश्विक हथियारों के व्यापार में भारत की हिस्सेदारी लगभग दोगुनी हो गई। लेकिन यह वैश्विक व्यापार के 0.2% हिस्से के साथ शीर्ष 25 निर्यातक देशों में 23 वां सबसे बड़ा निर्यातक था।

हथियारों के निर्यात को लेकर इसी साल 25 मार्च तो रक्षा मंत्रालय ने जानकारी दी थी कि भारत द्वारा हथियारों के निर्यात का मूल्य 2014 के बाद से लगभग छह गुना बढ़ा है जिसमें चालू वित्त वर्ष में अब तक 11,607 करोड़ रुपये का निर्यात दर्ज किया गया है।

लोकसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय रक्षा एवं पर्यटन राज्य मंत्री अजय भट्ट ने कहा था कि वित्त वर्ष 2015 में 1,941 करोड़ रुपये से 2021-22 में रक्षा निर्यात का मूल्य बढ़कर 11,607 करोड़ रुपये हो गया है।

वहीं हथियारों को निर्यात करने के मामले में अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और जर्मनी शीर्ष पांच में शामिल हैं। इन देशों ने मिलकर 2017-21 के दौरान कुल 77 फीसदी हथियार निर्यात किया।

सेना पर तीसरा सबसे बड़ा खर्च करने वाला देश भारत: सेना पर खर्च करने के मामले में अमेरिका 801 बिलियन डॉलर, चीन 293 बिलियन डॉलर, और भारत 76.6 अरब डॉलर के साथ तीसरे नंबर पर है।



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Monkeypox In India: केरल में मिला मंकीपॉक्स का दूसरा केस, दुबई से पिछले हफ्ते लौटा था शख्स

monkeypox second case confirmed in kerala केरल में मंकीपॉक्स का दूसरा मामला सामने आया है। सूबे के स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि दुबई से प...