मनराज ग्रेवाल शर्मा
पंजाब में मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह की पाकिस्तानी ‘दोस्त’ और पत्रकार अरूसा आलम भी चर्चा में आ गई हैं। कैप्टन का विरोधी खेमा लगातार उनके रिश्ते को लेकर हमले कर रहा है। कांग्रेस नेताओं ने कैप्टन के साथ अरूसा की तस्वीरें भी वायरल कीं।
अरूसा ने एक इंटरव्यू में कहा कि जब 2004 में उनकी मुलाकात कैप्टन अमरिंदर सिंह से हुई थी तब वह 56 साल की थीं और कैप्टन 66 के थे। इस उम्र में कोई प्रेमी की तलाश नहीं करता बल्कि उनका रिश्ता रूहानी है और वे अच्छे दोस्त हैं। जब साल 2005 में कैप्टन के साथ अरूसा की प्रेस क्लब वाली तस्वीर सामने आई थी तब अफवाह यह भी उड़ी थी कि अमरिंदर सिंह की पत्नी ने उन दोनों को रिश्ते का बारे में सोनिया गांधी से भी शिकायत की।
जब कैप्टन अमरिंदर सिंह सत्ता में नहीं थे तब भी अरूसा आलम का भारत आना जाना लगा रहता था। इसके बाद 2017 में वह फिर से चर्चा में आईं जब एक बायॉग्रफी के लॉन्च प्रोग्राम में वह चंडीगढ़ में कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ मौजूद थीं। अरूसा का एक दोस्त यह भी बताता है कि किस तरह से मुख्यमंत्री आवास में डिनर के बाद कई मंत्री और अधिकारी अरूसा के पास पहुंचकर उन्हें गुडनाइट विश कर रहे थे। यहां तक इनके पालतू शिजू को भी लोग गुडबाय बोल रहे थे।
हालांकि पिछले कुछ सप्ताह से स्थिति एकदम बदल गई। पंजाब के उपमुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा ने कहा कि उन्होंने अरूसा के ‘आईएसआई लिंक’ को लेकर जांच के आदेश दिए हैं।
जेनेरल रानी कही जाती थीं अरूसा की मां
अरूसा को कैप्टन अमरिंदर सिंह एक अच्छी डिफेंस जर्नलिस्ट मानते हैं। वैसे अरूसा आलम का सेना से रिश्ता काफी पुराना है। उनकी मां अकलीन अख्तर को पाकिस्तानी तानाशाह जनरल याहया खान से करीबी के चलते ‘जेनेरल रानी’ के नाम से जाना जाता था। वह पाकिस्तान के गुजरात के एक जमींदार की बेटी थीं। उनकी शादी एक पुलिस अधिकारी से हुई थी जो कि उम्र में लगभग उनसे दोगुना था। बाद में अकलीन ने अपने पति को छोड़ दिया।
पाकिस्तान में दूसरे सैन्य शासन की बात कई जगहों पर लिखी गई है और यह भी कहा गया है कि अकलीन का रुतबा इतना था कि लोग प्रमोशन, ट्रांसफर और नौकरी के लिए उनसे सिफारिश लगवाया करते थे। वही समय था जब अरूसा भी बड़ी हो रही थीं। उनकी शादी पाकिस्तान में विदेश सेवा के एक अधिकारी एजाज़ आलम सो हो गई।
पाकिस्तान में जब जुल्फिकार अली भुट्टो राष्ट्रपति बने तो अकलीन अख़्तर को नज़रबंद कर दिया गया। जनरल जिया-उल-हक ने जब भुट्टो सरकार का तख्ता पलट कर दिया तो पांच साल बाद उन्हें मुक्ति मिली।
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