Sunday, October 31, 2021

डिजिटल दुनिया का लैंगिक सच

कोविड-19 के संकट को दुनिया ने सेहत के मोर्चे पर एक बड़े संकट के तौर पर तो बीते दो साल में देखा-भुगता ही, इसने तकनीक और मनुष्य के संबंध को भी नए सिरे से परिभाषित किया। वैश्विक तौर पर डिजिटल माध्यमों को अपनाने की दर में 2020 के सिर्फ दो महीनों में पांच साल के बराबर का उछाल आया। भारत ने 2025 तक एक खरब अमेरिकी डालर की डिजिटल अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य रखा है। 2017-18 के 20 करोड़ अमेरिकी डालर के स्तर के मुकाबले यह महत्वाकांक्षी लक्ष्य एक विशाल बढ़त होगी। कोविड-19 के प्रभावों के कारण टेली-हेल्थ कंसल्टेशंस में 500 फीसद की बढ़ोतरी हुई। आनलाइन खरीदारी की ओर लोगों के बढ़ते रुझान से बड़ा ढांचागत बदलाव सामने आया। इसी का नतीजा है कि ई-रिटेल अब भारत के 95 फीसद जिÞलों तक पहुंच गया है। इतना ही नही, आज डिजिटल भुगतान का आकार प्रतिदिन 10 करोड़ दैनिक लेनदेन के स्तर के पार चला गया है।

अलबत्ता बढ़त के इन आंकड़ों से जुड़ा एक चिंताजनक पहलू भी है। यह पहलू लैंगिक सरोकारों से जुड़ा है। इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन के इस साल के एक अध्ययन के मुताबिक भारतीय पुरुषों के मुकाबले भारतीय महिलाओं के पास मोबाइल फोन होने की संभावना 15 फीसद कम है। जबकि पुरुषों के मुकाबले 33 फीसद कम महिलाओं द्वारा मोबाइल इंटरनेट सेवाओं के इस्तेमाल किए जाने की संभावना है। 2020 में कुल वयस्क महिला आबादी में से 25 फीसद के पास स्मार्टफोन थे जबकि पुरुषों में यह आंकड़ा 41 फीसद था।

भारत की तुलना बांग्लादेश से करें तो वहां मोबाइल पर मालिकाना हक के मामले में महिलाओं और पुरुषों के बीच का लैंगिक अंतर 24 फीसद और मोबाइल के इस्तेमाल के मामले में 41 फीसद है। पाकिस्तान में यह लैंगिक अंतर और भी ऊंचा था। वहां मोबाइल फोन पर मालिकाना हक में लैंगिक तौर पर 34 फीसद और मोबाइल इस्तेमाल में 43 फीसद का अंतर था। अगर समूचे दक्षिण एशिया की बात करें तो मोबाइल फोन पर स्वामित्व के मामले में लैंगिक अंतर 26 फीसद से घटकर 19 फीसद हो गया। दूसरी ओर मोबाइल इंटरनेट के इस्तेमाल के मामले में महिलाओं और पुरुषों के बीच का 67 फीसद से 36 फीसद रह गया। यह तथ्य ‘मोबाइल जेंडर गैप रिपोर्ट-2021’ में सामने आया है।

अलबत्ता इन सकारात्मक बदलावों के बावजूद 2017 से 2020 के बीच के आंकड़े ये बताते हैं कि दक्षिण एशिया में मोबाइल फोन के मामले में लैंगिक असमानता दुनिया में सबसे ज्यादा है। हाल के सालों में एशिया-प्रशांत क्षेत्र में इंटरनेट के इस्तेमाल को लेकर भारत का लैंगिक अंतर सबसे ज्यादा था। एक ओर 25 फीसद पुरुषों तक मोबाइल इंटरनेट की पहुंच थी तो वहीं सिर्फ 15 फीसद महिलाओं को ही इंटरनेट की सुविधा हासिल थी।

इस तरह मोबाइल इंटरनेट तक पहुंच के मामले में लैंगिक विषमता 40.4 फीसद के स्तर पर थी। एशिया के दूसरे देशों के साथ तुलना करने पर हम पाते हैं कि पाकिस्तान में लैंगिक अंतर 39.4 फीसद, इंडोनेशिया में 11.1 फीसद और चीन में 2.3 फीसद थी। इंटरनेट की नई दुनिया ज्यादा संपन्न होने जा रही है। ऐसे में डिजिटल दुनिया में लैंगिक गैरबराबरी का फर्क अगर नहीं सिमटा तो आगे वह बड़े सामाजिक संकट को जन्म देगा। दुर्भाग्य से यह सब हो रहा है आधुनिकता के उत्तर चरण में और तकनीक के प्रतापी जोर के बावजूद। ल्ल

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