Monday, September 27, 2021

प्रधानमंत्री का अमेरिका दौरा: जरूरी मुद्दों पर क्या-क्या हासिल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चार दिन अमेरिकी दौरे में उनका व्यस्त कार्यक्रम रहा। अपने इस दौरे में उन्होंने विश्व के कई नेताओं और कॉरपोरेट हस्तियों के साथ बैठक की। इस दौरे को आने वाले दिनों में भारत के लिए नतीजे देने वाला माना जा रहा है। पूंजी निवेश और रक्षा सहयोग की दृष्टि से भारत के प्रयासों को गति मिली है- कारोबार, सामरिक और रणनीतिक साझेदारी को विश्वसनीयता की गहराइयों तक ले जाने और सहयोग को लेकर भरोसा मिला है। साथ ही, जापान, आस्ट्रेलिया के साथ बढ़ रहा सहयोगात्मक रिश्ता तथा क्वॉड के फोरम की मजबूती के भी संकेत हैं। हालांकि, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से द्विपक्षीय मुलाकात में पाकिस्तान और अफगानिस्तान को लेकर खास संकेत नहीं मिले। अफगानिस्तान के मुद्दे पर अभी अमेरिका देखो और इंतजार करो की स्थिति में है। पाकिस्तान के मुद्दे पर भी बाइडेन का रुख सामने नहीं आया है।
आतंकवाद और कट्टरवाद
अमेरिका दौरे में विभिन्न मंचों से भारत ने आतंकवाद और कट्टरवाद को लेकर मजबूती से पक्ष रखा है। पाकिस्तान के अफगानिस्तान में बढ़ रहे दखल को लेकर भारत ने अपनी चिंताएं विश्व समुदाय से साझा की। हालांकि, अफगानिस्तान के संदर्भ में विश्व समुदाय ने अभी तक कोई स्पष्ट रुख नहीं जाहिर किया है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी पाकिस्तान की जमीन से भारत के विरुद्ध प्रायोजित आतंकवाद पर कोई सख्त टिप्पणी नहीं की। केवल कूटनीतिक भाषा का इस्तेमाल कर आतंकवाद के विरुद्ध प्रतिबद्धता जताई।
क्वॉड’, ‘ऑकस’ और भारत
अमेरिका ने ‘क्वॉड’ शिखर सम्मेलन के पहले ‘आॅकस’ (तीन देशों के समूह) में जान डाल दी। ‘आॅकस’ के स्वरूप में आने के बाद अब क्वॉड का महत्व कम माना जा रहा है। अमेरिका ने क्वॉड के फोरम को एशिया प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ रहे प्रभुत्व को रोकने के लिए आगे बढ़ाया था। वाइट हाउस में बैठक के बाद क्वॉड पर चर्चा ने एक बार फिर जोर पकड़ा है, लेकिन इस बैठक में चीन या बेजिंग का नाम नहीं लिया गया। दक्षिण चीन सागर का नाम लेकर भी कुछ नहीं कहा गया। अमेरिका, आस्ट्रेलिया, जापान और भारत के फोरम ने एशिया-प्रशांत क्षेत्र को लेकर बयान जारी किया है। सुरक्षा और स्वतंत्र परिवहन एवं अंतरराष्ट्रीय कानून के पालन पर भी जोर दिया गया है। क्वॉड सम्मेलन में अप्रत्यक्ष तौर पर यह साफ है कि चीन का नाम लिए बिना जिस तरह सुरक्षा में सहयोग करने की बात हुई है उससे पश्चिमी देशों के साथ भारत के रिश्ते मजबूत होंगे।
अमेरिका से रक्षा सौदे
प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिकी कंपनियों के प्रमुखों के साथ मुलाकात को भारत में पूंजी निवेश और रक्षा परियोजनाओं के लिहाज से अहम बताया जा रहा है। अमेरिका की जनरल एटॉमिक्स कंपनी खतरनाक प्रीडेटर ड्रोन की निर्माता है और भारत ऐसे 30 ड्रोन खरीदने का मन बनाया हुआ है। कंपनी इसके लिए तकनीकी सहायता भी उपलब्ध कराएगी। इसके लिए भारत तीन अरब डॉलर यानी करीब 22 हजार करोड़ रुपए खर्च करेगा। सेना के तीनों अंगों के लिए 10-10 प्रीडेटर ड्रोन खरीदे जाने हैं। यह ड्रोन हवा में लगातार 35 घंटे तक उड़ान भर सकता है। यह 50 हजार फीट की ऊंचाई पर तीन हजार किमी तक सफर कर सकता है। इस पर खतरनाक मिसाइलें लगाई जा सकती हैं। इसके अलावा कई अन्य रक्षा मसलों पर बातें हुई हैं, जो आने वाले दिनों में सामने आएंगी।
संरा सुरक्षा परिषद एवं एनएसजी
बाइडेन-मोदी मुलाकात में अमेरिकी वीजा का मुद्दा उठा ही, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में भारत की स्थायी सदस्यता को लेकर अमेरिका का समर्थन मिल गया। अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन के समर्थन से भारत के प्रयासों को प्रोत्साहन मिला है, जो स्थायी सदस्य के रूप में संयुक्त राष्ट्र के इस उच्च और महत्त्वपूर्ण अंग में स्थान के लिए दावा जता रहा है। बाइडेन ने जानकारी साझा करने और उन्नत सैन्य प्रौद्योगिकियों में सहयोग को मजबूत करने कई ऐसी बातें कही है, जिससे उन्होंने भारत को प्रमुख रक्षा भागीदार माना है।के आइएनएस अरिहंत में भी ऐसी ही प्रणाली लगाई गई है। नौसेना की ताकत में इजाफा करने के लिए भारत छह परमाणु शक्ति चलित पनडुब्बियों को नौसेना में शामिल करने की तैयारी कर रहा है। 1.2 लाख करोड़ के इस सौदे को जल्द ही सरकार की तरफ से मंजूरी दी जा सकती है। ये पनडुब्बियां पारंपरिक हथियारों जैसे तारपीडो और मिसाइलों से लैस होंगी।

संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता

प्रधानमंत्री ने अपनी यात्रा में संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता का सवाल उठाया। उन्होंने साफ कहा कि संरा पर आज कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। इन सवालों को हमने पर्यावरण और कोविड के दौरान देखा है। दुनिया के कई हिस्सों में चल रहे छद्म युद््ध आतंकवाद और अभी अफगानिस्तान के संकट ने इन सवालों को और गहरा कर दिया है।
भारत काफी समय से संयुक्त राष्ट्र में सुधार की मांग करता रहा है। अभी इसकी ज्यादातर संस्थाओं में विकसित देशों का प्रभुत्व दिखता है। फिर चाहे महासभा हो या सुरक्षा परिषद, सुधारों की जरूरत हर जगह नजर आती है। मसलन, महासभा जो प्रस्ताव पारित करती है, वे बाध्यकारी नहीं होते हैं। यह बड़ी कमजोरी है।

क्या कहते हैं जानकार

अप्रत्यक्ष तौर पर यह साफ है कि चीन का नाम लिए बिना जिस तरह सुरक्षा विषयों पर सहयोग करने की बात हुई है उससे पश्चिमी देशों के साथ भारत के रिश्ते मजबूत होंगे। क्वॉड देशों ने कभी भी चीन का नाम नहीं लिया है, लेकिन इतना जरूर है कि क्वॉड में होना भारत के लिए हर लिहाज से बेहतर है।

  • जी पार्थसारथी,पूर्व राजनयिक

भारत यह राय रखने में कामयाब रहा कि जो देश आतंकवाद का सहारा ले रहे हैं, उन्हें यह समझना होगा कि आतंकवाद उनके लिए भी उतना ही बड़ा खतरा है। अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल आतंकवाद फैलाने और आतंकी हमलों के लिए न हो और पाकिस्तान उसका लाभ न ले सके।

  • श्याम सरन,पूर्व विदेश सचिव

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