1975 से 1977 तक देश में लगाई गई इमरजेंसी के दौर में बड़े-बड़े नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया था। जयपुर की पूर्व महारानी गायत्री देवी को भी जेल में बंद कर दिया गया था। उन्हें दिल्ली की तिहाड़ जेल में रखा गया। यहां गायत्री देवी के साथ कई बुरे अनुभव हुए। लेकिन यहां उन्हें संबल मिला ग्वालियर की पूर्व महारानी और राजमाता विजयाराजे सिंधिया का। जिससे काफी हद तक वह खुद को सुरक्षित महसूस करने लगीं थीं।
दरअसल जिस तिहाड़ जेल की जिस कोठरी में गायत्री देवी और विजयाराजे सिंधिया कैद थीं, वहां राजरानी नाम की एक महिला भी थी। वो सभी कैदियों पर हुक्म चलाती थी और उनका खाना छीन लेती थी। सभी उससे डरते थे, क्योंकि वो कहती थी कि अगर कोई उसके रास्ते में आया तो वह उसकी नाक काट लेगी।
गायत्री देवी और विजयाराजे सिंधिया इस राजरानी के कारनामों से परेशान हो गए थे। दोनों ने उसकी जेल अधिकारियों से उसकी शिकायत कर दी। इसके बाद उनकी कोठरियों के बाहर कांटे की बाड़ लगा दी गई, जिससे राजरानी उन्हें परेशान ना कर सके। जेल में सबसे बड़ी समस्या थी गंदगी। इस वजह से यहां दिन में मक्खियां परेशान करतीं और रात में मच्छर। इस कारण आधी रात में भी जेल में शोरगुल रहता था।
जेल में बीमार हो गईं थी राजमाता गायत्री देवी: जेल में रहने के दौरान ही गायत्री देवी बीमार हो चुकी थीं। इस वजह से वह काफी निराश रहने लगी थीं। बीमारी और इससे हुई निराशा की वजह से एक बार उन्होंने विजयाराजे सिंधिया से कहा था कि उन्हें ऐसा लग रहा है मानो इस जेल से अब उनकी अर्थी ही बाहर निकलेगी।
गायत्री देवी की निराशा ऐसे स्तर पर पहुंच गई थी कि उन्होंने अपने घरवालों को ये खबर भिजवा दी थी कि उनका अंतिम संस्कार कैसे और किस जगह किया जाए। इस कठिन दौर में विजयाराजे सिंधिया ने गायत्री देवी का साथ निभाया और उनकी निराशा को कम करने के लिए एक चाल चली।
विजयाराजे सिंधिया ने गायत्री देवी से कहा कि उनके पास दिव्य दृष्टि है और उन्होंने भविष्य में देखा है कि आप जेल से इस तारीख को रिहा हो जाएंगी। इसके बाद गायत्री देवी निश्चिंत हो गईं लेकिन जब उस तारीख को वह रिहा नहीं हुईं तो उन्होंने विजयाराजे सिंधिया से कहा कि आपकी भविष्यवाणी तो गलत साबित हो गई।
गायत्री की बात सुनकर सिंधिया ने कहा कि इस बार उनसे भूल हो गई और अब आप अगली तारीख को निश्चित रिहा हो जाएंगी। गायत्री देवी की निराशा को कम करने के लिए सिंधिया लगातार ये सिलसिला चलाती रहीं। इस किस्से का जिक्र ‘राजपथ से लोकपथ पर’ नाम की किताब में है। ये किताब राजमाता विजयाराजे सिंधिया की ऑटोबायोग्राफी है और इसका संपादन मृदुला सिन्हा ने किया है।
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