कलकत्ता उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में पूर्व क्रिकेटर और बीसीसीआई के अध्यक्ष सौरव गांगुली को पश्चिम बंगाल हाउसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (HIDCO) की ओर से एक शैक्षणिक संस्थान की स्थापना के लिए भूमि आवंटन को रद कर दिया।
उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति अरिजीत बनर्जी की खंडपीठ ने आवंटन प्रक्रिया के दौरान हिडको के आचरण पर कड़ी आपत्ति जताई। कोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि गांगुली शर्तों को निर्धारित करने में सक्षम थे।
कहा कि यह ऐसा मामला नहीं है जहां राज्य अपनी संपत्ति से निपट रहा है। उसे उचित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए था। इससे यह पता चलता है कि प्रामाणिकता की जांच किए बिना आवंटन करने की प्रक्रिया अपनाई गई है।कोर्ट ने कहा कि गांगुली सिस्टम के साथ खेलने में सक्षम है, वह भी पहली बार नहीं।
आदेश में कोर्ट ने कहा, “यह एक ऐसा मामला था, जिसमें प्रतिवादी सिस्टम के साथ खेलने में सक्षम है। उन्होंने बंद आंखों से भूखंड आवंटित करने का फैसला कर लिया जैसे यह राज्य की संपत्ति नहीं, बल्कि निजी लिमिटेड कंपनी थी। जिसे इसकी संपत्ति से निपटने की अनुमति हो।”
हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि बेशक गांगुली ने क्रिकेट में देश के लिए बड़ी उपलब्धियां अर्जित की है, और देश हमेशा अपने खिलाड़ियों के साथ खड़ा रहता है, खासकर जो अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में देश का प्रतिनिधित्व करते हैं। लेकिन जब कानून की बात आती है, तो हमारी संवैधानिक योजना यह है कि सभी लोग समान हैं और कोई भी विशिष्ट होने का दावा नहीं कर सकता है।
उच्च न्यायालय ने दोहराया कि यदि गांगुली खेलों के विकास में रुचि रखते हैं, विशेष रूप से क्रिकेट, तो वह उभरते क्रिकेटरों को प्रेरित करने के लिए कई मौजूदा खेल प्रतिष्ठानों से जुड़ सकते थे।
हालांकि भूखंड पहले से ही वापस की जा चुकी है, कोर्ट ने सत्ता के मनमाने प्रयोग से मुकदमेबाजी करने के लिए राज्य और हिडको पर प्रत्येक पर 50,000 रुपये तथा गांगुली और उनके फाउंडेशन पर 10,000 रुपये का टोकन जुर्माना लगाया है। कोर्ट ने कहा कि उन्हें कानून के अनुसार काम करना चाहिए था।
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